मोहाली जिले के सिसवां जंगल में खैर के पेड़ों की अवैध कटाई का सिलसिला जारी है, जिससे स्थानीय आम जन में चिंता एवं आक्रोश व्याप्त है। हाल ही में जंगल के भीतर फिर से कई पेड़ों को काटे जाने का मामला सामने आया है, जिसे लेकर ग्रामीणों ने वन विभाग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। गांव के सरपंच संजीव शर्मा एवं अन्य स्थानीय प्रतिनिधियों ने खानपान के जांच के लिए जंगल का दौरा किया, जहां उन्हें कटे हुए खैर के पेड़ मिले। यह घटना एक ऐसा संकेत है कि वन माफिया वन विभाग के सहयोग से इस अवैध कटाई को अंजाम दे रहे हैं।
ग्राम पंचायत के सदस्यों ने जब जंगल का निरीक्षण किया, तब उन्हें कई पेड़ जमीन पर गिराए गए मिले। इस स्थिति को देखते हुए स्थानीय निवासियों ने वन विभाग के अधिकारियों को सूचना दी, लेकिन दो घंटे बीत जाने के बाद भी कोई अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा। सरपंच संजीव शर्मा ने बताया कि उन्होंने विभाग के गार्ड को इस बारे में बताया था। गार्ड ने आश्वासन दिया था कि वह संबंधित अधिकारियों के साथ मौके पर पहुंचेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह स्थिति दर्शाती है कि विभागीय लापरवाही के कारण जंगल को लगातार नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
स्थानीय लोगों का मानना है कि यह कटाई वन विभाग के अधिकारियों और वन माफिया के बीच एक गुप्त साजिश का परिणाम है। सरपंच और अन्य ग्रामीणों का कहना है कि माफिया ने काटे गए पेड़ों के अवशेषों को मिट्टी और झाड़ियों से ढकने की कोशिश की है, जिससे किसी को भी इनकी कटाई का पता न चल सके। यह अत्यंत चिंताजनक है कि एक ओर जहां सरकार पर्यावरण संरक्षण पर जोर दे रही है, वहीं दूसरी ओर ऐसे मामलों में लापरवाही किसी भी प्रमुख प्रशासनिक संस्थान की ओर से उठ रही है।
सरपंच संजीव शर्मा और पंचायत के अन्य सदस्य स्पष्ट रूप से आरोप लगा रहे हैं कि वन विभाग के कई अधिकारी इस अवैध गतिविधि में माफिया का साथ दे रहे हैं, जिससे जंगल को लगातार नुकसान हो रहा है। यदि समय रहते इस मामले की उचित जांच नहीं की गई, तो भविष्य में इसका परिणाम न केवल स्थानीय निवासियों पर, बल्कि जलवायु और पर्यावरण पर भी गंभीर हो सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि विभाग घटना के प्रति कठोर कदम उठाए और माफिया के खिलाफ ठोस कार्रवाई करें। इसके बिना सिसवां जंगल की स्थिति और भी बदतर हो सकती है।
इस प्रकार, यह घटना न केवल एक गंभीर चिंता का विषय है, बल्कि यह वन विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़ा करती है। स्थानीय लोगों की मांग है कि विभाग तुरंत ही उचित कार्रवाई करे और जंगल की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए। यदि वन विभाग इस दिशा में सक्रिय नहीं होता है, तो निश्चित रूप से स्थानीय समुदाय का विश्वास भी उठ जाएगा, जिसके दूरगामी प्रभाव होंगे।