पंजाब की राजनीति में एक बार फिर से खालिस्तानी आतंकवाद की छाया दिख रही है, जब पूर्व मुख्यमंत्री सुखबीर बादल पर एक आतंकी ने हमले की योजना बनाई। इस हमले के पीछे आतंकी नारायण सिंह चौड़ा का हाथ था, जिसने एक बरसों पुरानी पद्धति का इस्तेमाल करते हुए, पॉइंट ब्लैंक रेंज से सुखबीर बादल को निशाना बनाने की कोशिश की, ताकि उनकी हत्या सुनिश्चित की जा सके। हालांकि, सुखबीर की सुरक्षा में तैनात एएसआई जसबीर सिंह ने उसे सफलता नहीं दी और हमलावर की योजना विफल कर दी। यह ध्यान देने योग्य है कि जिस स्थान पर यह घटना घटी, वही स्थान 41 वर्ष पूर्व पंजाब पुलिस के DIG एएस अटवाल की हत्या का भी गवाह रहा था। इस प्रकरण में भी खालिस्तानी आतंकवादियों ने एक समान तरीके का इस्तेमाल किया था।
सुखबीर बादल पर फायरिंग का यह प्रयास पंजाब में नेताओं की सुरक्षा को लेकर एक गंभीर चिंता को उजागर करता है। राज्य में पहले भी बड़े नेताओं की हत्याएं हो चुकी हैं, जिनमें अकाली नेता हरचंद सिंह लौंगोवाल और पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह का नाम प्रमुख है। हरचंद सिंह लौंगोवाल की हत्या 20 अगस्त 1985 को हुई थी, जब उन्हें गोलियां मारी गई थीं। यह हत्या उनके द्वारा राजीव गांधी के साथ किए गए समझौते के बाद हुई, जिसने खालिस्तान समर्थकों को नाराज कर दिया था। पिछले कई दशकों में पंजाब में कई बड़े हमले हुए हैं, जिससे वहाँ के राजनीतिक माहौल में चिंता का माहौल बना हुआ है।
सुखबीर बादल पर इस हमले की पुष्टि करते हुए, पूर्व DGP केपीएस गिल ने एक बार फिर से उस भयानक दिन का जिक्र किया, जब DIG एएस अटवाल की हत्या की गई थी। अटवाल की हत्या के समय अनियंत्रित माहौल दर्शाता था, जहाँ दुकानदारी करने वाले लोग भी भय के कारण अपने-अपने शटर गिराने पर मजबूर हो गए थे। उनकी लाश को दो घंटे तक वहीं पड़ा रहने दिया गया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आतंकवाद ने उस समय समाज को किस प्रकार दहशत में रखा।
इसके अलावा, 31 अगस्त 1995 को बेअंत सिंह की हत्या को भी याद किया जाना चाहिए, जब उन्हें बम विस्फोट के जरिए मारा गया था। इस हमले के पीछे खालिस्तान टाइगर फोर्स का हाथ था, जो उनके सख्त आतंकवाद विरोधी रुख से नाराज थे। बेअंत सिंह ने पंजाब को आतंकवाद के सबसे कठिन हालात से निकालने की कोशिश की, जिसके फलस्वरूप उनकी हत्या का मामला सामने आया। इससे यह प्रमाणित होता है कि राज्य की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर खतरे मंडरा रहे हैं।
हाल ही में, जालंधर में RSS नेता जगदीश गगनेजा की हत्या भी इस बात का प्रमाण है कि राज्य में राजनीतिक हिंसा एक गंभीर समस्या है। उनका हत्या आतंकवादियों द्वारा सिख पंथ के विरोध में तर्क करते हुए हुई। इसके पीछे एक संगठित योजना थी, जो यह दर्शाती है कि आतंकवादी अब भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सक्रिय हैं। हाल के फायरिंग के मामलों में से एक, जहां हिंदू नेता सुधीर सूरी को भी एक सार्वजनिक स्थान पर गोली मारी गई थी, यह दर्शाता है कि पंजाब का माहौल कितनी तेजी से बदल रहा है और यहाँ सुरक्षा की स्थिति कितनी गंभीर है।
इन घटनाओं ने पंजाब में भय और आतंक का एक नया दौर पैदा किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वहाँ के न्याय और अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता बहुत अधिक है। नेताओं और आम लोगों को एकजुट होकर इस समस्या का सामना करने की जरूरत है, ताकि पंजाब को वापस शांति और विकास के मार्ग पर लाया जा सके।