उत्तराखंड: मरीजों को राहत, चिकित्सा सेवा शुल्क कम

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-वित्त मंत्री ने राज्य के सरकारी चिकित्सालयों की ओपीडी और आईपीडी का पंजीकरण शुल्क, एंबुलेंस और बेड चार्ज कम करने को दिया अनुमोदन

देहरादून, 06 जुलाई (हि.स.)। प्रदेश की धामी सरकार ने राज्य के सरकारी चिकित्सालयों में अब मरीजों को ओपीडी और आईपीडी पंजीकरण के लिए शुल्क कम करके बड़ी राहत दी ही। यही नहीं एंबुलेंस और बेड चार्जेज भी कम देना होगा। वित्त मंत्री ने प्रस्ताव पर अपना अनुमोदन दे दिया है, जल्द ही यह राज्य के सरकारी चिकित्सालयों में लागू होगा। इससे जनसामान्य पर अनावश्यक वृद्धि का भार कम होगा।

वित्त मंत्री डॉ. प्रेमचंद अग्रवाल ने बताया कि राज्य की विषय भौगोलिक परिस्थितियों एवं कमजोर आर्थिक स्थितियों के कारण पर्वतीय जनपदों में आम जनमानस केवल राजकीय चिकित्सालयों पर ही निर्भर हैं। इसके चलते राज्य सरकार ने चिकित्सा सेवा शुल्क की दरों को कम किये जाने का विचार किया है। उन्होंने बताया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की ओपीडी में अभी तक 13 रुपये लिया जा रहा है, जिसे अब 10 रुपये किया गया हैं। इसी तरह सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में 15 रुपये से 10 रुपये, जबकि जिला व उप जिला चिकित्सालय में 28 रुपये से 20 रुपये किया गया है।

मंत्री अग्रवाल ने बताया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की आईपीडी में अभी तक 17 रुपये लिया जा रहा है, जिसे अब 15 रुपये किया गया है। इसी तरह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 57 रुपये से 25 रुपये, जबकि जिला व उप जिला चिकित्सालय में 134 रुपये से 50 रुपये किया गया है।

मंत्री ने बताया कि विभागीय एंबुलेंस में अभी तक रोगी वाहन शुल्क को 05 किलोमीटर तक 315 रुपये न्यूनतम रुपये व अतिरिक्त दूरी के लिए 63 रुपये प्रति किलोमीटर लिया जा रहा है, जिसे 05 किलोमीटर तक 200 रुपये न्यूनतम और अतिरिक्त दूरी के लिए 20 रुपये प्रति किलोमीटर किया गया है।

उन्होंने बताया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में रेफर करने पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र द्वारा मरीजों से पंजीकरण शुल्क नहीं लिया जाएगा। इसी तरह उप जिला चिकित्सालय से जिला चिकित्सालय में रेफर करने पर जिला चिकित्सालय की ओर से पंजीकरण शुल्क नहीं लिया जाएगा।

मंत्री ने बताया कि अब राज्य में यूजर्स चार्जेज में प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत की वृद्धि नहीं जाएगी। इसके विपरीत आम जनमानस एवं रोगियों के हित में यूजर्स चार्जेज में तीन वर्ष के बाद शासन स्तर पर समीक्षा की जाएगी।