सुप्रीम कोर्ट में आज होगी CAA को लेकर दायर 144 याचिकाओं पर अहम सुनवाई

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नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय में आज नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री के अनुसार चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ आज सीएए से संबंधित 144 याचिकाओं पर सुनवाई करेगी, जिनमें अधिकतर याचिकाएं सीएए के खिलाफ हैं, जबकि कुछ याचिकाएं नए नागरिकता कानून के समर्थन में भी हैं। इनमें केंद्र सरकार की वह याचिका भी है जिसमें सीएए के खिलाफ कई हाई कोर्ट में दायर याचिकाओं को शीर्ष अदालत में हस्तांतरित करने की मांग की गई है।

आज की सुनवाई में केरल सरकार की वह याचिका भी है जिसमें संशोधित नागरिकता कानून लागू करने के केंद्र के फैसले को चुनौती दी है। केरल इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाला पहला राज्य है। इसके अलावा सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं में जयराम रमेश, महुआ मोइत्रा, देव मुखर्जी, असददुद्दीन ओवेसी, तहसीन पूनावाला, जमीयत उलेमा ए हिन्द, असम गण परिषद, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन, इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग, पीस पार्टी समेत अन्य कई की ओर से दायर याचिकाएं भी हैं।

आपको बताते जाए कि इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पिछले साल 18 दिसंबर को हुई सुनवाई में नये कानून पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया था। हालांकि कोर्ट ने संशोधित नागरिकता कानून की संवैधानिक समीक्षा करने की बात कहते हुए में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। उसके बाद इस साल 9 जनवरी को सुनवाई के दौरान सीजेआई ने सीएए के खिलाफ देश भर में हो रहे प्रदर्शन में हिंसा की बात कहते हुए कहा था कि वह तभी सुनवाई करेंगे जब हिंसा रुकेगी। साथ ही उन्होंने कहा था कि देश इस समय कठिन दौर से गुजर रहा है।

गौरतलब है कि केंद्र की मोदी सरकार ने 10 जनवरी को नोटिफिकेशन जारी कर पूरे देश में संशोधित नागरिकता कानून को लागू कर दिया है। बीते साल संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित इस कानून में कहा गया है कि 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू, सिख, पारसी, बौद्ध, जैन और ईसाई समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। इस कानून का विरोध करने वालों का तर्क है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इस कानून में मुसलमानों का नाम नहीं लेकर संविधान की धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना की अवहेलना की है।