प्रयागराज, 09 नवम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुनील उमराव ने कहा कि कैमरे का फ्रेम शक्ति सम्बंधों का सृजन करता है। सिनेमा में कैमरा का एंगल यह निर्धारित करता है कि कौन बचाने वाला मसीहा है और कौन मारने वाला है और किसे बचाया जा रहा है। कैमरा एंगल का सबसे अधिक प्रयोग एक्शन सिनेमा में किया जाता है।
गुरुवार को ईश्वर शरण पीजी कॉलेज में चल रहे फिल्म एप्रिसिएशन वर्कशॉप के चतुर्थ दिन प्रो. उमराव ने बताया कि कैमरे के विभिन्न एंगल का प्रयोग किस किस प्रकार सिनेमा की रचना करता है। जबकि समानांतर सिनेमा या कला सिनेमा में कैमरा एंगल का प्रयोग कम किया जाता है। इस प्रकार के सिनेमा में स्टेटिक कैमरा एंगल का इस्तेमाल अधिक किया जाता है।
प्रो. सुनील उमराव ने मुम्बई से बनने वाले सिनेमा में कैमरे के इस्तेमाल और दक्षिण भारतीय सिनेमा में होने वाले कैमरे के इस्तेमाल में अंतर बताया। उनके अनुसार दक्षिण भारतीय सिनेमा में कैमरे का फ्रेम अधिक रंगपूर्ण और जानकारियों से भरा होता है। उन्होंने प्रतिभागियों को केंद्र में रखकर कहा कि केवल महंगे कैमरे के इस्तेमाल से फोटोग्राफी की विधा नहीं सीखी जा सकती। फोटोग्राफी के लिए कलात्मक और रचनात्मक दृष्टि की आवश्यकता होती है। सामान्य कैमरे से भी बेहतरीन तस्वीरें ली जा सकती हैं। दूसरी ओर महंगा कैमरा होते हुए भी अर्थहीन तस्वीरें प्रायः लोग खींचते रहते हैं।
इस अवसर पर सांस्कृतिक समिति की संयोजिका डॉ. गायत्री सिंह, फिल्म एप्रिसिएशन वर्कशॉप के संयोजक डॉ. अंकित पाठक, सांस्कृतिक समिति की सदस्य डॉ. अश्विनी, डॉ. कृष्णा सिंह, डॉ. दीपिका शर्मा आदि मौजूद रहीं। वर्कशॉप का संचालन हिंदी विभाग के शोधार्थी रंजीत कुमार और धन्यवाद ज्ञापन बीए तृतीय वर्ष की छात्रा पूजा वर्मा ने किया।