02HREG126 गुरु सूर्य है, चंद्र गुरु है, गुरु ही पूर्ण प्रकाश…
– गुरु पूर्णिमा के दिन माता-पिता व लौकिक गुरुओं की करनी चाहिए पूजा
मीरजापुर, 02 जुलाई (हि.स.)। गुरु एक जलता हुआ दिया है जिसके प्रकाश में सब बुझे हुए शिष्य भी प्रकाशित हो उठते हैं। गुरु एक ऐसा शब्द है जिसका वर्णन शब्दाें से नहीं हो सकता अभिप्राय कि गुरु की महिमा इतनी अनन्त है कि हम उसका व्याख्यान ही नहीं कर सकते। गुरु वह पारस मणि है जो दोष -खोट से भरे शिष्य के मानस मंडल पर जब छा जाते हैं तो उसी कलुषित आत्मा को अपने स्पर्श से जो बना देते हैं, उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। आचार्य कोई साधारण व्यक्ति नहीं, वह शक्ति है जो उस लोक से परम का संदेश लेकर इस धरा पर तप्त आत्माओं को शांति का संदेश देते हैं। गुरु पूर्णिमा भारतवर्ष में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन गुरुओं और व्यास की पूजा जाती है। व्यास पराशर ऋषि के पुत्र कृष्णद्वैपायन का उपनाम है। कृष्णद्वैपायन ने वेदों को पृथक-पृथक कर चार भागों से विभाजित किया था, इसलिए इन्हें व्यास कहा जाने लगा।
गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि मुनियों में व्यास हूं, इसलिए आषाढ़ पूर्णिमा को व्यास के रूप में भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। बाद में व्यास रूप में उन गुरुओं की पूजा की जाती है, जो गुरु मंत्र कान में देते हैं। गुरु शब्द के बहुत अर्थ होते हैं, किंतु गुरु के तीन अर्थ- बृहस्पति, पिता आदि गुरुजन और पढ़ाने वाला गुरु मुख्य है। इन तीनों की पूजा करने की बात तो स्वप्न हो गया है। गुरु शब्द का रूढ़ अर्थ करते हुए कहा गया है कि गुरु शब्द का ”गु” शब्द अंधकार को बताता है और ”रु” शब्द उस अंधकार को दूर करने वाला है अर्थात् अंधकार को दूर करने वाला गुरु कहलाता है। एक सूर्य अंधकार को दूर करता है और दूसरे वे गुरु हैं जो स्वयं अंधकार में रहते हुए शिष्यों के अंधकार को दूर करते हैं। अंधकार को दूर करने वाले गुरु स्वयं अपार सम्पत्ति के स्वामी हैं। उनका ज्ञान उनकी बढ़ती हुई सम्पत्ति से मूल्यांकित किया जाता है।
ऐसे गुरुओं की पूजा के दिन (गुरु पूर्णिमा को) शासन को सुरक्षा की व्यवस्था करनी पड़ती है। नेतागण भी उनसे आशीर्वाद लेते हैं, क्योंकि उनके शिष्य उनके वोटर बन सकते हैं। इन गुरुओं की सम्पत्तियों की जांच तब तक नहीं होती, जब तक ये किसी संगीन अपराध में फंस नहीं जाते। ऐसे गुरुओं और इनके शिष्यों की संख्या बढ़ती जाती है। अब तो योग गुरुओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है। कल इन योग गुरुओं की गुरु पूर्णिमा के दिन पूजा होने लगेगी। इनके शिष्य अपने-अपने गुरुओं के चमत्कारों का ऐसा वर्णन करेंगे मानो वे प्रकृति के लिए नियमों को बदल देने में सक्षम हैं।
गुरु पूर्णिमा के दिन मालियों, फल और मिष्ठान बेचने वालों को प्रचुर लाभ होता है। ये गुरु भी उन फलों और मिष्ठानों को या तो पुनः अपने स्थान पर पहुंचवा देते हैं या अपने पट्ट शिष्यों को दिव्य अवसर पर प्रदान करते हैं। यदि इन फलों को अस्पताल में रोगियों को बंटवाया जाता तो रोगियों का कल्याण होता और बांटने वाले को पुण्य।
आश्चर्य होता है लोगों के ज्ञान पर, माता-पिता ही किसी भी संतान के सर्वश्रेष्ठ गुरु हैं। ब्रह्मशक्ति के रूप में माता संतानों को अपनी कुक्षि में रखकर जन्म देती है। विष्णु शक्ति के रूप में उनका पालन करते हैं और शिव-शक्ति के रूप में माता-पिता उनके विघ्नों का संहार करते हैं, विषपायी बनकर। इसके बाद अक्षर ज्ञान कराने वाला ही पूज्य गुरु है। ये गुरु क्रमशः प्रगति के भवन पर पहुंचाने के लिए दिव्य सोपान हैं, पर सीढ़ियों की भांति इन्हें पद से कुचला जाता है। इन्हीं गुरुओं की अनुकम्पा से ही व्यक्ति कुछ अर्थ प्राप्ति के योग्य होता है, पर इन्हें पूछता है कौन ? वे उन गुरुओं के चरणों के रज को लेकर उन्हें द्रव्य दान देते हैं, जिन्हें स्वयं पता नहीं है आत्मा-परमात्मा के विषय में। उपनिषद गण कहते रहे, उस परमात्मा को जाना नहीं जा सकता है। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है कि इदमित्थं हि जात न सोई। पर ये लोग अवश्य जान लेते हैं। पुस्तकों में लिखे कुछ उपदेशों को रटकर सस्वर सुनाकर शिष्यों को आकर्षित कर लेते हैं और उनका दोहन करते रहते हैं। संन्यासियों का स्थान तो तपोवन है, लेकिन वहां नागर सुख-सम्पदा नहीं है।
यदि गुरु पूर्णिमा के दिन माता-पिता और अर्थकारी विद्या देने वालों की पूजा की जाती तो उन्हें सच्चे हृदय से आशीर्वाद मिलता और प्रत्येक स्थान पर रहने वाले फूल-फल व मिष्ठान बेचने वालों को लाभ मिलता। मुद्रा का विकेंद्रीकरण होता। इसके अतिरिक्त छोटे बच्चों में अच्छे संस्कार होते। वे भी अपने माता-पिता को गुरु मानकर उनकी प्रत्येक वर्ष पूजा करते। बच्चों को यह कथा सुनाई तो जाती है कि गणेशजी अपने माता-पिता (पार्वती और शिव) की परिक्रमा करके ही पूजित हैं। अतः गुरु पूर्णिमा के दिन माता-पिता रूपी गुरु की पूजा करनी चाहिए। साथ ही उन लौकिक गुरुओं की, जिनकी छत्रछाया में- काक होहिं पिक वकहु मराला- हो जाते हैं- पूजा करनी चाहिए, क्योंकि ये सुलभ, सुखद, शांतिप्रद और प्रत्यक्षसिद्ध हैं।
12 पूर्णिमाओं में महत्वपूर्ण है आषाढ़ पूर्णिमा
प्रश्न उठ रहा है कि आषाढ़ पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है। 12 पूर्णिमाओं में आषाढ़ पूर्णिमा महत्वपूर्ण है, क्योंकि आषाढ़ पूर्णिमा तक प्रायः ग्रीष्म से परितप्त वसुंधरा का आतप वर्षा से शांत हो जाता है। आषाढ़ का अर्थ ही होता है कि जहां या जिस स्थान में सबकुछ सह्य हो। इस माह के अंत तक ग्रीष्म का ताप सुखद सह्य होता है। गुरु पूर्णिमा के स्पर्श से या कृपा मात्र से संसार का ताप सुखद सह्य हो जाना चाहिए, पर ऐसा होता नहीं है। श्रीमद्भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं कि जो भक्त पत्र, पुष्प, फल और जल मुझे प्रीति पूर्वक अर्पण करता है, वह प्रिय होता है और ये लोकोत्तर गुरु उपयुक्त वस्तुओं के अर्पण करने से प्रसन्न कभी नहीं हो सकते हैं, क्योंकि ये गुरु श्रेष्ठ हैं।