नेपाल में सत्तारूढ़ गठबंधन टूटने के कगार पर

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01HINT7 नेपाल में सत्तारूढ़ गठबंधन टूटने के कगार पर

– राष्ट्रपति चुनाव और गृह मंत्रालय को लेकर घटक दलों में खींचतान

काठमांडू, 01 फरवरी (हि.स.)। नेपाल में एक महीने पहले ही बनी सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार टूटने के कगार पर पहुंच गई है। अगले महीने होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार और गृह मंत्रालय को लेकर गठबंधन के घटक दलों में अपनी-अपनी दावेदारी के बाद शीर्ष नेताओं के बीच ना सिर्फ एक-दूसरे पर विश्वास का संकट पैदा हो गया है बल्कि उनके बीच जुबानी जंग के साथ-साथ आरोप-प्रत्यारोप भी शुरू हो गया है।

निर्वाचन आयोग की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव की तारीख का ऐलान करने के साथ ही सत्तारूढ़ गठबंधन के घटक दलों में अब तक साझा उम्मीदवार का चयन होना तो दूर इसको लेकर मतभेद गहरे होते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ को इस पद पर पहुंचाने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले नेकपा-एमाले के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली का दावा है कि राष्ट्रपति के पद पर उनकी पार्टी का ही उम्मीदवार होना चाहिए।

नेकपा-एमाले के महासचिव शंकर पोखरेल ने कहा कि सरकार और सत्तारूढ़ गठबंधन बनते वक्त ही यह तय हो गया था कि प्रधानमंत्री पद नेकपा (माओवादी केंद्र) को मिलेगा तो राष्ट्रपति और संसद के स्पीकर का पद एमाले को मिलेगा।

वहीं नेकपा (माओवादी केंद्र) एमाले के इस दावे को खारिज तो नहीं करती है, लेकिन उसे स्वीकार भी करने से परहेज कर रही है। नेकपा (माओवादी केंद्र) के उपाध्यक्ष कृष्ण बहादुर महरा कहते हैं कि सरकार के निर्माण के समय जो परिस्थिति थी, वह अब बदल चुकी है। बदली हुई परिस्थिति में नए ढंग से सहमति बनाकर आगे बढ़ना होगा।

नेकपा (माओवादी केंद्र) के इस फैसले पर सत्तारूढ़ घटक के प्रमुख और सबसे बड़े दल नेकपा-एमाले के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। संसद से बाहर निकलते हुए ओली ने पत्रकारों के सवाल पर कहा कि नेकपा-एमाले को राष्ट्रपति पद देने के पूर्व सहमति बनी थी, इसलिए जिस उम्मीदवार को हम प्रस्तावित करेंगे उसी के नाम पर राष्ट्रीय सहमति बनेगी। किसी अन्य उम्मीदवार को स्वीकार करने का सवाल ही नहीं उठता।

ओली चाहते हैं कि राष्ट्रपति पद पर उनका कोई अपना खास करीबी बैठे, ताकि उसका उपयोग या दुरुपयोग अपने फायदे के लिए करें, लेकिन प्रधानमंत्री प्रचंड को डर है कि अपने से डेढ़ गुना बड़ी पार्टी के इशारे पर चलने वाला राष्ट्रपति बन जाता है तो उनकी सरकार को कभी भी अपदस्थ किया जा सकता है इसलिए नेकपा (माओवादी केंद्र) अपने पसंदीदा व्यक्ति को ही राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में आगे करना चाह रही है।

गृह मंत्रालय को लेकर विवाद

राष्ट्रपति के उम्मीदवार को लेकर सत्तारूढ़ गठबंधन के घटक दलों के बीच मतभेद बढ़ने की खबर के बीच अब गृह मंत्रालय को लेकर गठबंधन के तीसरे सबसे बड़े दल राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी ने प्रधानमंत्री पर रवि लामिछाने को पुन: गृहमंत्री बनाने के लिए दबाव डाला है। नागरिकता विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद गृहमंत्री पद से हटाए गए लामिछाने पुन: नागरिकता का प्रमाणपत्र हासिल करने के बाद गृह मंत्रालय में नियुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री प्रचंड से अब तक तीन बार मिल चुके हैं। मंगलवार को दाहाल से मुलाकात में स्वतंत्र पार्टी के तरफ से प्रधानमंत्री को अल्टीमेटम देते हुए सरकार छोड़ने तक की धमकी दे दी है। प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के प्रवक्ता मुकुल ढकाल ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री हमारे दल के अध्यक्ष को गृह मंत्रालय में पुन: नियुक्त नहीं करते हैं तो हमारी पार्टी सरकार छोड़ देगी।

जवाब में प्रधानमंत्री ने फिलहाल गृह मंत्रालय अपने पास ही रखने और स्वतंत्र पार्टी या किसी अन्य व्यक्ति या लामिछाने को देने से साफ इनकार कर दिया है। नेकपा ( माओवादी केंद्र) की स्थाई समिति की बैठक से बाहर निकलते हुए प्रधानमंत्री प्रचंड ने मीडिया को बताया कि लामिछाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की कॉपी जब तक नहीं आ जाती तब तक गृह मंत्रालय किसी अन्य को नहीं देने की बात है। प्रधानमंत्री ने कहा कि गठबंधन बचाने का वो अंतिम समय तक प्रयास जारी रखेंगे।

छोटे घटक दलों में मंत्रालय को लेकर विवाद

प्रचंड सरकार को समर्थन करने वाले छोटे घटक दल भी प्रधानमंत्री से नाराज हैं। सरकार का समर्थन करने वाली जनता समाजवादी पार्टी (जसपा) ने अब तक कोई अच्छा मंत्रालय नहीं मिल पाने के कारण सरकार में सहभागी भी नहीं हुई है। जसपा सांसद प्रदीप यादव का कहना है कि उनकी पार्टी को जब तक कम से कम तीन मंत्रालय नहीं मिलता है तब तक वो सरकार में सहभागी नहीं होने वाले हैं। इसी तरह सरकार को समर्थन देने वाली नागरिक उन्मुक्ति पार्टी ने कहा है कि जब तक उनके नेता रेशम चौधरी को जेल से रिहा नहीं किया जाएगा, तब तक ना तो सरकार में सहभागी होंगे ना सरकार को समर्थन जारी रखेंगे।

प्रचंड परेशान

प्रधानमंत्री प्रचंड गठबंधन में खुद को कंफर्टेबल महसूस नहीं कर पा रहे हैं। प्रधानमंत्री होने के बावजूद उनकी पार्टी के पास ना तो एक ढंग का मंत्रालय है और जो घटक दल हैं वो उनसे अधिक ओली के प्रति वफादार हैं। ओली जब चाहते हैं तब गठबंधन की बैठक होती है। ओली जब चाहते हैं तो ही कैबिनेट की बैठक हो पाती है। प्रचंड के पास ना तो वित्त मंत्रालय है, ना गृह मंत्रालय है और ना ही विदेश मंत्रालय एवं कृषि, शिक्षा, रोजगार, श्रम आदि मंत्रालय। यही कारण है कि प्रचंड ओली के बुने जाल में नहीं फंसना चाहते हैं। वो नेपाली कांग्रेस के साथ गठजोड़ के पक्ष में हैं। नेपाली कांग्रेस के कई सारे नेता लगातार प्रचंड के संपर्क में हैं।