दुराचारी को रोना ही पड़ेगा आज नहीं तो कलः शंकराचार्य

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15HREG369 दुराचारी को रोना ही पड़ेगा आज नहीं तो कलः शंकराचार्य

-प्रारब्ध के अनुसार ही सदाचारी भोग रहे कष्ट, दुराचारी सुख का कर रहे अनुभव

-दीक्षा कार्यक्रम में पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने सवालों का दिया जवाब

हमीरपुर, 15 अक्टूबर (हि.स.)। ग्राम इंगोहटा के सिद्ध पीठ मुमुक्ष आश्रम में शनिवार को संगोष्ठी दर्शन एवं दीक्षा कार्यक्रम में भक्तों के सवालों का जवाब देते हुए पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि संचित कर्मों से प्रारब्ध बनता है। प्रारब्ध के अनुसार इस जन्म में फल प्राप्त होते हैं। सदाचारी कष्ट भोग रहे है। दुराचारी सुख का अनुभव कर रहें हैं।

उन्होंने कहा कि यह प्रारब्ध का कारण हो सकता है। श्रेष्ठ कर्मों के अनुसार जीव मनुष्य योनि हासिल कर लेता है। संचित कर्मों का नाम ही प्रारब्ध है। मानव द्वारा किए गए शुभ अशुभ कर्म अन्य योनियों में भी जा सकते हैं। भगवान ने सृष्टि का निर्माण क्यों किया।

दुराचारी आनंद के साथ रह रहे हैं। सदाचारी कष्टों का सामना कर रहे हैं। ऐसा क्यों है। भक्तों के इस सवाल पर उन्होंने कहा कि भूमि में जो बीज बोया गया है। वह तो उगेगा ही। लेकिन उसका फल बाद में मिलेगा। कोई दुराचारी होने पर सुख भोग रहा है। यह सब पूर्व जन्म के कर्मों के फल हो सकते हैं। किंतु जब कालांतर में वर्तमान के कर्मों का फल मिलेगा तब उसे बुरे कर्मों का आभास होगा। उसे कष्टों का सामना करना ही पड़ेगा। सदाचारी धर्म के मार्ग पर चल रहे हैं। उनको जो कष्ट मिल रहा है। वह कष्ट नहीं उसका नाम तप है।

धर्म के मार्ग में, योग करने में, पढ़ाई करने में, श्रेष्ठ कर्म करने में कष्ट का अनुभव अवश्य होता है। किंतु बाद में उसका फल मीठा होता है। इस तरह किसी दुराचारी के सुख को देखकर सदाचारी को धैर्य नहीं खोना चाहिए। कोई व्यक्ति अनैतिक कर्माे के द्वारा खा पी रहा। उसे आज नहीं तो कल रोना ही पड़ेगा। शंकरचार्य जी ने कहा कि मनुष्य को मानव जीवन पाकर ईश्वर की भक्ति में तल्लीन रहना चाहिए। ईश्वर की भक्ति में ही सार है।

मनुष्य को सदैव शुभ कर्म ही करना चाहिए। धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए। माता पिता गुरु गोवंश की रक्षा करनी चाहिए। श्रेष्ठ कर्म करते समय मिलने वाले कष्ट की तनिक भी परवाह नहीं करनी चाहिए। क्योंकि यह कष्ट नहीं उनकी तपस्या है। जिसका परिणाम उन्हें अच्छा ही मिलेगा। जगतगुरु शंकराचार्य के संगोष्ठी दर्शन एवं गीता कार्यक्रम में काफी संख्या में लोगों ने दीक्षा ग्रहण की।

प्रवचन सुनने के लिए काफी संख्या में लोग मौजूद रहे। दोपहर को प्रवचन करने के बाद वे कानपुर की ओर प्रस्थान कर गए। विदाई के समय जगदगुरू शंकराचार्य ने कहा कि इंगोहटा गांव धन्य है। जहां के लोग धार्मिक कार्यों में लगे हुए हैं। यहां के लोगों को ब्रह्मलीन महान संत रोटीराम महाराज का सानिध्य प्राप्त होता रहा है। उनकी कृपा से यह गांव धर्म निष्ठ हो गया है।