अजय कुमार शर्मा
अपनी दुर्लभ आवाज और अभिनय प्रतिभा के बल पर कुंदन लाल सहगल ने भारतीय सिनेमा के चौथे दशक में जो छवि बनाई, वह उन्हें हिंदी फिल्मों के पहले महानायक का दर्जा दिलाती है। अपने फिल्मी जीवन के 15 वर्षों (1932 से 1946) के दौरान उन्होंने 27 हिंदी फिल्मों सहित कुल 35 फिल्मों में अभिनय किया और कुल 176 फिल्मी एवं गैर फिल्मी गाने गाए। इतने कम गायन से भी जो अमरता उन्होंने प्राप्त की उसे विरले ही प्राप्त कर पाते हैं। वैसे गायन में तो उनकी पहचान प्रारंभिक फिल्मों से ही बन गई थी, लेकिन गायक अभिनेता की लोकप्रिय छवि बनी फिल्म चंडीदास से। न्यू थियेटर्स द्वारा बनाई गई यह फिल्म पहले देवकी बोस के निर्देशन में बांग्ला भाषा में बनी थी और हिट हुई थी। न्यू थियेटर्स के भरोसेमंद कैमरामैन नितिन बोस ने ही इसे पास किया था, लेकिन हिंदी में इस फिल्म का निर्देशन कैमरामैन नितिन बोस को करना पड़ा। यह उनके द्वारा निर्देशित पहली फिल्म थी।
दरअसल देवकी बोस न्यू थियेटर्स के ही नहीं नितिन बोस के भी प्रिय निर्देशक थे। एक दिन जब नितिन बोस को पता चला कि देवकी बाबू ने राधा फिल्म्स के साथ सीता नाम की एक फिल्म बनाने का अनुबंध चोरी छुपे कर लिया है तो उन्हें उनका यह कृत्य न्यू थियेटर्स के साथ विश्वासघात करने जैसा लगा। यह बात उन्होंने जब देवकी बाबू से कही तो वह गुस्सा हो गए। उनका कहना था कि यह मेरा निजी मामला है और इसमें उन्हें दखल देने की कोई ज़रूरत नहीं है। तब नितिन बोस ने कहा कि यह मैं आपके दोस्त और शुभचिंतक होने के नाते कह रहा हूं, लेकिन देवकी बोस गुस्से में स्टूडियो छोड़कर चले गए। देवकी बोस की इस हरकत से नितिन बोस को गहरा सदमा लगा। वे एक सप्ताह तक स्टूडियो न जा सके।
न्यू थियेटर्स के मालिक बी.एन. सरकार को जब यह पता चला तो वह नितिन के घर जा पहुंचे। कारण पता चलने पर उन्होंने उनसे ही कोई कहानी चुनने और उसे निर्देशित करने को कहा। तब नितिन बोस ने कहा कि आप मुझे चंडीदास दुबारा बनाने की अनुमति दें। मैं उसको हिंदी में बनाऊंगा और इस तरह चंडीदास के हिंदी निर्माण का रास्ता खुला जो नितिन बोस ही नहीं बल्कि बी.एन. सरकार और न्यू थियेटर्स के लिए भी बेहद फायदेमंद रहा। इस फिल्म को सफलता मिली और नितिन बोस प्रथम श्रेणी के निर्देशकों में पहचाने जाने लगे। के.एल. सहगल को पहली बार एक उत्कृष्ट अभिनेता के रूप में प्रसिद्धि मिली। इतना ही नहीं फिर तो बांग्ला फिल्मों के हिंदी संस्करण भी नियमित बनने लगे।
चलते चलते
जम्मू में 4 अप्रैल, 1904 को जन्मे सहगल का मन पढ़ाई से ज्यादा गाने में लगता, जो उनके पिता को बिल्कुल पसंद न था। पिता के रिटायर होने पर उनके साथ वे जालंधर पहुंचे। उस समय उनकी उम्र लगभग 22 वर्ष की रही होगी। नौकरी की तलाश में वे अपने बड़े भाई के पास गए और फिर उन्हीं के साथ मुरादाबाद होते हुए खुद दिल्ली पहुंच गए। वहां से 1930 में शिमला जहां उन्हें एक ड्रामेटिक क्लब में अभिनय और गायन करना था, वहीं जीवनयापन के लिए रेमिंग्टन टाइपराइटर कंपनी में सेल्समैन का काम करना शुरू किया। कुछ समय बाद उनका तबादला दिल्ली कर दिया गया। वहां कश्मीरी गेट में उनका ऑफिस था। अपने गायन की वजह से वे बेहद लोकप्रिय सेल्समैन थे और खूब टाइपराइटर बेचते थे। उनकी लोकप्रियता से जलकर उनकी कंपनी के ही कुछ लोगों ने खातों में फेरबदल कर उन पर गबन का आरोप लगाया। जो आगे चलकर गलत साबित हुआ, लेकिन उन्होंने दुखी होकर कंपनी छोड़ दी। इसके बाद सहगल साहब ने कुछ दिन कानपुर और फिर कोलकाता (तब कलकत्ता) में साड़िया बेंचीं और एक दिन न्यू थियेटर्स में पहुंचने में कामयाब रहे।
(लेखक, राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)