घोड़े पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा और भैंसे पर करेंगी प्रस्थान

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– सुबह 06 बजकर 10 मिनट से 08 बजकर 31 मिनट तक कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

-भारतीय नववर्ष का स्वागत प्रकृति एवं भक्त दोनों ही आतुरता से करते हैं

भदोही, 01 अप्रैल (हि.स.)। चैत्र नवरात्र के साथ हिन्दू नववर्ष का शुभारम्भ होता है। इस दौरान प्रकृति अपने सम्पूर्ण सौंदर्य के साथ महकने के लिए तैयार है। भारतीय नववर्ष का स्वागत प्रकृति एवं भक्त दोनों ही आतुरता से करते हैं। इस बार मां दुर्गा घोड़े पर सवार हो आ रहीं हैं।

ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री ने शुक्रवार को बताया कि दो अप्रैल शनिवार से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहे हैं, जो 11 अप्रैल तक चलेंगे। इन नौ दिनों में विधि-विधान से मां दुर्गा के रूपों की पूजा करनी चाहिए, इससे घर में सुख-समृद्धि आती है। इस बार मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं और भैंसे पर प्रस्थान करेंगी। माता की इन सवारी को शुभ नहीं माना जाता है, लेकिन इस बार ग्रहों के उलटफेर ने कुछ राशि वालों के लिए इन नवरात्र को बेहद खास बना दिया है।

कलश स्थापना मुहूर्त

दो अप्रैल सुबह 06 बजकर 10 मिनट से सुबह 08 बजकर 31 मिनट तक कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त है। दोपहर 12:00 बजे से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक के मध्य कलेश स्थापना की जा सकती है। ज्योतिषीय दृष्टि से विशेष महत्व रखने वाले चैत्र नवरात्र में सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य इस दौरान मेष में प्रवेश करता है। चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने का असर सभी राशियों पर पड़ता है।

ऐसी मान्यता है कि नवरात्र के नौ दिन काफी शुभ होते हैं, इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य बिना सोच-विचार के कर लेना चाहिए। इसका कारण यह है कि पूरी सृष्टि को अपनी माया से ढकने वाली आदिशक्ति इस समय पृथ्वी पर होती है। चैत्र नवरात्र को भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का भगवान राम के रूप में अवतार भी चैत्र नवरात्र में ही हुआ था। इसलिए इनका बहुत अधिक महत्व है। चैत्र नवरात्र हवन पूजन और स्वास्थ्य के बहुत फायदेमंद होते हैं। इस समय चारों नवरात्र ऋतुओं के संधिकाल में होते हैं यानी इस समय मौसम में परिवर्तन होता है। इस कारण व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोरी महसूस करता है। मन को पहले की तरह दुरुस्त करने के लिए व्रत किए जाते हैं।

वैदिक धर्म शास्त्रों के अनुसार, नवरात्र के दौरान दुर्गासप्तशती का पाठ करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और समस्त पापों का नाश होता है। सामान्य रूप से दुर्गासप्तशती के सम्पूर्ण पाठ को करने का ही विधान है और समयाभाव अथवा किन्हीं विशेष परिस्थितियों में सप्तश्लोकी का। परन्तु वर्तमान समय में संपूर्ण दुर्गासप्तशती पढ़ने का समय निकालना सभी के लिए संभव नहीं है। इस अवस्था में आप निम्नलिखित मंत्र का पूर्ण विधि-विधान से जप कर संपूर्ण दुर्गासप्तशती पढ़ने का फल प्राप्त कर सकते हैं।

मंत्र इस प्रकार है

“या अंबा मधुकैटभ प्रमथिनी,या माहिषोन्मूलिनी,

या धूम्रेक्षण चन्ड मुंड मथिनी,या रक्तबीजाशिनी,

शक्तिः शुंभ निशुंभ दैत्य दलिनी,या सिद्धलक्ष्मी: परा,

सादुर्गा नवकोटि विश्व सहिता,माम् पातु विश्वेश्वरी”

दुर्गा सप्तसती का कैसे करें पाठ

प्रातःकाल सूर्योदय के समय नहाकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात भगवती दुर्गा के चित्र का विधिवत पूजन करें। मां दुर्गा के चित्र के समक्ष आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर इस मंत्र का जप करें। शीघ्र एवं उत्तम फल प्राप्त करने के लिए कम से कम पांच माला जप करें और समय के अभाव की स्थिति में एक माला करें। परन्तु यह ध्यान रखें कि आप एक दिन अधिक और दूसरे दिन कम मंत्रों का जाप नहीं कर सकते इसलिए नियत समय पर बंधी हुई संख्या में मंत्र जप करना ही उचित रहेगा। साथ ही इस जप के लिए सर्वश्रेष्ठ आसन कुश का है।

हमारे सनातन शास्त्रो में जीवन की समस्याओं को नियंत्रित करने के लिए योगों का विशेष महत्व दिया गया है अर्थात तिथि, करण पर आधारित पंचांग इत्यादि। किसी विशेष योग, मुहूर्त, नक्षत्र के समय किए गए अनुष्ठान विशेष लाभ देने वाले और प्रभाव को कई गुना बढाने वाले होते है। विशेष रूप से तीर्थ स्थलों में अनुष्ठान, ग्रहण, पूर्णिमा या अमावस्या पर किए जाने वाले अनुष्ठानों का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।