झाबुआ, 31 मार्च (हि.स.)। जिले के आदिवासी समुदाय द्वारा परम्परागत गढ़ उत्सव बुधवार देर शाम को जिला मुख्यालय के राजबाड़ा चौक सहित जिले के अन्य गांवों में बड़े हर्ष और उल्लास पूर्ण तरीके से मनाया गया, जिसमें कई आदिवासी युवाओं ने हिस्सेदारी की। झाबुआ मुख्यालय पर आयोजित इस उत्सव का उल्लास देर रात तक जारी रहा। इस रोमांचक उत्सव को देखने के लिए नगरीय निवासियों सहित बड़ी संख्या में जिले के आसपास के अंचलों से आदिवासी जन आए थे।
उल्लेखनीय है कि आदिवासी बहुल जिले में गढ़ उत्सव चैत्र कृष्णपक्ष त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इसे नववर्ष के पूर्व हर्षोल्लास के रूप में मनाए जाने वाले उत्सव के रूप में भी जाना जाता रहा है। उत्सव के आरम्भ में गढ़ देवता की पूजा की गई। जिला मुख्यालय के अतिरिक्त यह उत्सव जिले के अन्य अंचलों में भी प्रति वर्ष चैत्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि को ही मनाया जाता है।
आदिवासी समुदाय में यह उत्सव प्राचीन समय से ही मनाया जाता रहा है। झाबुआ जिला स्थान पर पूर्व में इसका आयोजन राज दरबार की ओर से होता था, किन्तु अब इसका आयोजन नगरपालिका द्वारा किया जाता है। गढ़ में करीब 25 से 30 फीट का एक खंब राजबाड़ा चौक पर बीच में गाड़ दिया जाता है। जिस पर चढ़ना होता है। पहले के समय में खंब के सहारे ही चढ़ना होता था, अब इस खंब के दोनों तरफ रस्सियां बांध दी जाती है। जिसके सहारे आदिवासी युवा को खंब के ऊपरी छोर पर पहुंचना होता है। जहां पर बांध कर रखी गई मिठाई वह स्वयं खाता है, और नीचे अपने परिजनों के लिए भी देता है। गढ़ की इस कठिन परीक्षा में कुछ युवक ही आखिरी छोर पर पहुंचते हैं। वहां पहुंचने पर उस युवक द्वारा गढ़ जीत लिया गया है, ऐसा माना जाता है। साथ ही सभी लोगों द्वारा उसे बड़े सम्मान से देखा जाता है। गढ़ जीतने पर उस युवक के परिजनों सहित ग्रामवासी गढ़ के आसपास गोलाकार रूप में अपने परम्परागत वाद्य ढोलक मांदल बजाते हुए परिक्रमा करते हैं और महिलाएं गीत गाती हुई विजय की अभिव्यक्ति करते हैं। आरम्भ में गढ़ देवता की पूजा की जाती है।