– धूमकेतु लियोनार्ड और जेमिनीड उल्कापात आकाश को रोशन कर रहे
नैनीताल :- नए वर्ष के स्वागत की तैयारी न केवल पूरी दुनिया में शुरू हो गई है, वरन आसमान में भी इस मौके पर खूबसूरत आतिशबाजी जैसे नजारे देखे जा सकते हैं। आने वाले दिनों का आकाश दो ऐसी प्रमुख घटनाओं से जगमगाने वाला है।
पहला है सी-2021ए1 नाम का लियोनार्ड धूमकेतु। इसी वर्ष 3 जनवरी 2021 को खोजा गया यह धूमकेतु इस पूरे वर्ष का सबसे चमकीला धूमकेतु बताया जा रहा है। लगभग 80 हजार वर्ष में सूर्य की परिक्रमा करने वाला यह धूमकेतु आंतरिक सौर मंडल और हमारे पास लगभग 80 हजार वर्षों के बाद आएगा। इस धूमकेतु का नाम इसके खोजकर्ता ‘द माउंट लेमोन ऑब्जर्वेटरी’ यूएसए के जीजे लियोनार्ड के नाम पर रखा गया है। यह धूमकेतु 12 दिसंबर को पृथ्वी के सबसे करीब से गुजरा और अब 3 जनवरी 2022 को सूर्य के सबसे करीब से गुजरेगा।
स्थानीय एरीज यानी आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र यादव के अनुसार लियोनार्ड धूमकेतु पिछले साल दिखाई दिए नियोवाइज धूमकेतु जितना चमकीला नहीं है, लेकिन यह दूरबीन और छोटी टेलिस्कोपों का उपयोग करके अब तक सुबह तड़के आकाश में दिखाई दे रहा था। अब यह शाम के समय दिखाई दे रहा है। हालांकि शाम के धुंधलके में इसकी दृश्यता प्रभावित हो रही है। एरीज के पूर्व पोस्ट डॉक्टरेट फेलो और हिरोशिमा विश्वविद्यालय जापान के सहायक प्रोफेसर डॉ अविनाश सिंह ने धूमकेतु के हरे रंग के केन्द्रक और लम्बी पूंछ दिखाती हुई खूबसूरत छवि को एरीज के मनोरा पीक परिसर से कैमरे में कैद किया है।
दूसरी खगोलीय घटना है जेमिनीड उल्कापात। लगभग दो सप्ताह तक चलने वाला यह उल्कापात 13-14 दिसंबर को चरम पर होगा। हालांकि उल्काओं को बोलचाल की भाषा में शूटिंग स्टार या टूटता तारा कहा जाता है, लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार वास्तव में यह नाम सही नहीं है क्योंकि इसका तारों से कोई लेना-देना नहीं है।
डॉ. यादव ने बताया कि जब धूमकेतु और क्षुद्रग्रह आंतरिक सौर मंडल से गुजरते हैं तो वे बादलों के रूप में बहुत सारी धूल छोड़ जाते हैं। जब पृथ्वी की कक्षा ऐसे किसी बादल के पास से गुजरती है, तो उस धूल के कई कण हमारे वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं और 80 से 120 किमी की ऊंचाई पर घर्षण के कारण जल जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप प्रकाश की एक लकीर दिखाई देती है जो आमतौर पर कुछ क्षणमात्र के लिए ही होती है। इसे उल्का कहा जाता है। अंधेरे और साफ आकाश वाली किसी आम रात में आकाश के विभिन्न हिस्सों में प्रति घंटे 8-10 उल्काएं दिखाई देती हैं।
उन्होंने बताया कि एक उल्कापात में यह संख्या अधिक होती है और अधिकांश उल्काएं आकाश के एक ही क्षेत्र से आते हुए प्रतीत होती हैं। इस क्षेत्र को रेडिएंट कहा जाता है। उल्कापात का नाम आमतौर पर उस तारामंडल या नक्षत्र के नाम पर रखा जाता है, जिसमें रेडिएंट स्थित होता है। जेमिनीड उल्कापात का नाम मिथुन (जेमिनी) राशि के तारामंडल के नाम पर रखा गया है। उल्कापात की चरम पर प्रति घंटे 80-100 उल्का दिखाई देगी। यह भारत से दिखाई देने वाले उल्कापातों में सबसे अच्छा उल्कापात है। उल्काओं को नग्न आंखों से देखा जा सकता है और इसके लिए किसी विशेष उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है। तड़के सुबह 2 बजे के बाद अंधेरे में कुछ समय के लिए खुले आसमान को धैर्य के साथ लेटकर देखने का अलग ही अनुभव होता है।