आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी शीतकालीन पूजा स्थल नृसिंह मंदिर में हुई विराजमान

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गोपेश्वर :- बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद सोमवार को आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी अपने शीतकालीन पूजा स्थल जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर पहुंच गई है। गद्दी के जोशीमठ पहुंचने पर स्थानीय लोगों और तीर्थयात्रियों ने फूल मालाओं के साथ स्वागत किया।

पौराणिक मान्यताओं के अनुरूप बदरीनाथ की यात्रा काल में जहां भगवान नारायण की पूजा-अर्चना छह माह तक केरल के नम्बूदरी ब्राह्मणों की ओर से की जाती है, वहीं शीतकाल में धाम में बदरी विशाल की पूजा अर्चना देवताओं की ओर से की जाती है। ऐसे में बदरीश पंचायत में शामिल उद्धव और कुबेर जी की शीतकालीन पूजाएं पांडुकेश्वर स्थित योगध्यान बदरी व कुबेर मंदिर में की जाती हैं जबकि आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी और भगवान नारायण के वाहन गरुड़ जी की पूजा नृसिंह मंदिर जोशीमठ में की जाती है।

इसी के तहत रविवार को शंकराचार्य की गद्दी उद्धव और कुबेर जी की उत्सव डोलियों के साथ शंकराचार्य गद्दी पांडुकेश्वर पहुंची, जहां सोमवार को पूजा-अर्चना के बाद बदरीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी रावल ईश्वर प्रसाद नम्बूदरी और धर्माधिकारी भुवन उनियाल की अगुवाई में शंकराचार्य की गद्दी जोशीमठ नृसिंह मंदिर पहुंची। इस दौरान विष्णु प्रयाग मंदिर में भी पूजा-अर्चना की गई। नृसिंह मंदिर पहुंचने पर डोली को लोगों के दर्शनार्थ प्रांगण में रखा गया, जिसके बाद मुख्य पुजारी, धर्माधिकारी एवं वेदपाठियों ने गरुड़, वासुदेव मंदिर, नवदुर्गा मंदिर, नृसिंह मंदिर, लक्ष्मी मंदिर में पूजा अर्चना की। इसके बाद मुख्य पुजारी ने धर्माधिकारी के सानिध्य में शंकराचार्य कोठ में दर्शन कर चारधाम यात्रा के समापन की घोषणा की।