
लखनऊ। केजीएमयू के नेत्र रोग विभाग के डॉ. संजीव कुमार गुप्ता के मुताबिक ब्लैक फंगस के चपेट में आने की पहली वजह संक्रमित ऑक्सीजन मास्क का इस्तेमाल होना है। ऐसे में हर मरीज को नया मास्क प्रयोग करना चाहिए। डायबिटीज के मरीज कोरोना की चपेट में आने के बाद डॉक्टर की सलाह पर ही स्टेरॉयड लें। डायबिटीज मरीजों में पहले से रोगों से लड़ने की क्षमता कम होती है। स्टेरॉयड से प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इससे ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ जाता है।डॉ. संजीव के मुताबिक कोरोना को हराने के 14 से 15 दिन बाद ब्लैक फंगस के मामले देखे जा रहे हैं। हालांकि, कुछ मरीजों में पॉजिटिव होने के दौरान भी यह पाया गया है। यह बीमारी सिर्फ उन्हें होती है जिनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।एसजीपीजीआई के निदेशक प्रो. आरके धीमान ने बताया कि ब्लैक फंगस को लेकर घबराए नहीं और इलाज कराएं। यह फंगस नस ब्लॉक कर देता है, जिससे टिश्यू मरने लगते हैं। ब्लॉकेज वाले स्थान के आगे खून की सप्लाई बंद हो जाती है, जो दवा देने पर भी आगे नहीं बढ़ती। ऐसे में सर्जरी करनी पड़ती है। यह फंगस हवा में रहते हैं, जो सांस के जरिये हमारी नाक से होते हुए साइनस और फेफड़ों तक भी पहुंच जाते हैं। ब्लैक फंगस की पहचान के लिए कंट्रास एमआरआई की जरूरत पड़ती है। यह फंगस, चेहरे, नाक, साइनस, आंख और दिमाग में फैलकर उसे नष्ट कर देता है। इससे मौत का भी खतरा रहता है।
1- कोविड इलाज के दौरान जिन्हें स्टेरॉयड दवा जैसे, डेक्सामिथासोन, मिथाइल प्रेडनिसोलोन इत्यादि दी गई हो।
2- जिन कोविड मरीजों को ऑक्सीजन पर या आईसीयू में रखना पड़ा हो।
- डायबिटीज का अच्छा नियंत्रण ना हो।
- कैंसर, किडनी ट्रांसप्लांट के लिए दवा चल रही हो।