देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड का उच्च हिमालयी क्षेत्र हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रहा है। न सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य बल्कि यह अपनी अनुपम जैवविविधता के लिए भी जाना जाता है। अब दुनिया भी इस जैवविविधता से रूबरू हो सकेगी। यह संभव हो पाया है उत्तराखंड में चल रही सिक्योर हिमालय परियोजना की बदौलत। ‘सिक्योर हिमालय युवा वीडियो फैलोशिप’ के तहत स्थानीय युवाओं ने उच्च हिमालयी क्षेत्र की जैवविविधिता, संस्कृति, वास्तुकला समेत अन्य विषयों पर आठ फिल्में तैयार की हैं।
अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस पर इनकी लांचिंग की गई और अब इंटरनेट मीडिया पर भी इन्हें अपलोड किया गया है। उत्तराखंड देश के उन राज्यों में शामिल है, जहां केंद्र सरकार और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के सहयोग से सिक्योर हिमालय परियोजना चल रही है। परियोजना में गंगोत्री नेशनल पार्क, गोविंद वन्यजीव विहार और अस्कोट अभयारण्य तक का क्षेत्र शामिल है। यह उच्च हिमालयी क्षेत्र हिम तेंदुओं का घर तो है ही, यहां की जैवविविधता भी बेजोड़ है। परियोजना के तहत तीन से छह हजार मीटर की ऊंचाई वाले इन क्षेत्रों में हिम तेंदुओं के संरक्षण के साथ ही स्थानीय निवासियों की आजीविका पर भी फोकस किया गया है।
इसी कड़ी में इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में पड़ने वाले गांवों के युवाओं के लिए एक माह का सिक्योर हिमालय युवा वीडियो फैलोशिप कार्यक्रम चलाया गया। इसमें प्रशिक्षित युवाओं ने परियोजना के विभिन्न पहलुओं पर आधारित आठ फिल्में तैयार की हैं। इनमें परियोजना के विविध आयाम तो हैं ही, इस क्षेत्र की जैवविविधता, संस्कृति, जीवनशैली, वास्तुकला को भी बखूबी चित्रित किया गया है। यह फिल्में दारमा घाटी, गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान व गोविंद वन्यजीव अभयारण्य की जैवविविधता, गंगोत्री क्षेत्र की संस्कृति, पलायन का दंश, क्षेत्र की जीवनशैली, वन्यजीवन, वास्तुकला, शरद ऋतु में गंगोत्री क्षेत्र जैसे विषयों पर केंद्रित हैं।राज्य में परियोजना के नोडल अधिकारी आरके मिश्र के अनुसार पलायन का दंश झेल रहे राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में इसकी चलते वन्यजीवों के संरक्षण और इनसे संबधित समुदाय के विकास में युवाओं की भागीदारी सीमित है। उस पर विषम भूगोल और संचार सुविधाओं की कमी इस चुनौती को ज्यादा जटिल बना देती है। उन्होंने बताया कि हिमालय युवा वीडियो फैलोशिप के माध्यम से परियोजना के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों के युवाओं के एक कैडर का निर्माण होगा। और ये वन्यजीव संरक्षण और समुदाय की स्थायी आजीविका के लिए भविष्य के प्रवक्ता बनेंगे। फैलोशिप का डिजाइन, ग्रीन हब मॉडल की अवधारणा से प्रेरित है, जिसे उत्तराखंड की परिस्थितियों के अनुरूप नए सिरे से डिजाइन किया गया है। उन्होंने बताया कि फैलोशिप के माध्यम से एक मजबूत व प्रभावी नेटवर्क भी तैयार हुआ है।