किसान आंदोलन में गरीब बच्चियों ने आपदा में ढूंढा अवसर

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गाजियाबाद। आपदा में भी अवसर ढूंढना जिंदगी की अलामत है। कुछ ऐसा ही नजारा किसान आंदोलन में दिखाई दे रहा है। जहां आंदोलन के बीच कुछ लोगों का रोजगार भी फल फूल रहा है। हालांकि रोजगार बहुत मजबूत स्थिति में नहीं है लेकिन जिनके लिए यह रोजगार उपलब्ध है। उनके भरण-पोषण के लिए तो काम चल ही जाता है।

दरअसल यूपी गेट पर हजारों किसान आंदोलनरत हैं। जहां वे खाने-पीने का सामान भी ले कर आए हैं। ऐसे में प्लास्टिक की बोतल और कचरा बीनने वाले बच्चे इस आपदा को भी अवसर के रूप में देख रहे हैं और इसी क्रम में वे लगातार कचरा बीनने का काम कर रहे हैं। निश्चित रूप से कचरा बीनते हुए बच्चे प्रतिदिन कुछ पैसे कमा लेते हैं। ऐसा ही नजारा लगातार देखा जा रहा है। किसान आंदोलन में बच्चों द्वारा कचरा बीनने को लेकर एक सुखद पहलू यह है कि किसानों की बढ़ती तादाद के बावजूद कचरा बीनने वाले बच्चे कचरा साफ कर देते हैं। जिसके चलते धरना स्थल के आसपास बहुत अधिक गंदगी दिखाई नहीं दे रही है। इस संबंध में बच्ची ने बताया कि पहले वे लोग फैक्ट्री क्षेत्र और गाजीपुर मंडी के आसपास कचरा बीनने जाते थे लेकिन जब से किसान आंदोलन शुरू हुआ है तब से वह किसान आंदोलन स्थल के आसपास ही कचरा बीन कर अपना काम चला लेते हैं।

किसानों के प्रदर्शन का बुधवार को 14 वां दिन है। ऐसे में किसानों ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि अगर बात नहीं बनीं, तो प्रदर्शन जारी रहेगा। साथ ही उनका कहना है कि वे लोग 6 महीने का राशन साथ लेकर आए हैं और हर दिन 10 हजार से ज्यादा लोगों को खाना खिला सकते हैं।

बता दें कि बीते 14 दिनों से किसानों का आंदोलन जारी है। सुबह से लेकर रात तक तमाम किसान लंगर में खाना खाते हैं। वहीं इस लंगर के दौरान प्लास्टिक के गिलास आदि का भी प्रयोग होता है। यहां रोजाना देखा जा रहा है कि लंगर के आसपास 6 से 7 साल उम्र की छोटी बच्चियां धरना स्थल से प्लास्टिक के गिलास आदि को बीनती हैं। भले ही ये हमारे लिए झूठे गिलास कूड़ा समान हों, लेकिन कूड़ा बीनती इन बच्चियों के लिए ये दो वक्त की रोटी का साधन है। ऐसे में जहां इन बच्चों की पढ़ने-लिखने और खेलने-कूदने की उम्र है। ऐसे में ये अपने परिवार का पालन-पोषण की जिम्मेदारी का बोझ उठा रहे हैं।