उप्र की राजनीति पर असर डालेंगे बिहार के नतीजे

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समाजवादी पार्टी ने 2020 की तरह इस बार भी बिहार विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी नहीं उतारे। इस बार चुनावी बिसात पर सपा की मौजूदगी केवल महागठबंधन और इसमें भी विशेषकर राष्ट्रीय जनता दल के समर्थन तक ही सीमित रही। इसके अलावा बसपा किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनी और उसने 181 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। उप्र में योगी सरकार के हिस्सा और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) ने 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।

बिहार में राजग जिसमें भाजपा प्रमुख दल हैं, जिस तरह जीत की ओर बढ़ रहा है, उससे उत्तर प्रदेश में पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना लाजिमी है। बिहार की जीत 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए ‘यूपी मॉडल’ (जिसमें माइक्रो-मैनेजमेंट और ज़मीनी स्तर पर जुड़ाव शामिल है) को सफल बनाने में मदद करेगी। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बिहार चुनाव में प्रमुख प्रचारकों में से एक थे, इसलिए नतीजे उनके प्रभाव को भी रेखांकित करेंगे।

बिहार की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और उप्र की समाजवादी पार्टी विचारधारा, वोट बैंक का सामाजिक समीकरण और कार्यशैली कमोबेश एक जैसी है। ऐसे में, बिहार चुनाव के नतीजे सपा के लिए एक संकेत हो सकते हैं कि उसे अपनी रणनीति में क्या बदलाव करने चाहिए। पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिले, जो बिहार से सटे हुए हैं जैसे बलिया, गाजीपुर, गोरखपुर, कुशीनगर के स्थानीय नेताओं और मतदाताओं पर बिहार के नतीजों का सीधा प्रभाव पड़ सकता है।

वहीं बिहार के नतीजे भविष्य के गठबंधन समीकरणों को भी प्रभावित करेंगे। जिस तरह के नतीजे सामने आ रहे हैं, उसमें कांग्रेस का प्रदर्शन बिहार में निराशाजनक दिख रहा है। ऐसे में उप्र में सपा के साथ उसके संबंधों पर असर पड़ेगा। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था।

राजनीतिक विशलेषक सुरेन्द्र अग्निहोत्री के अनुसार, बिहार के चुनाव से पार्टी की दूरी का सपा प्रमुख अखिलेश यादव का निर्णय पूरी तरह से रणनीतिक था। बिहार में पाने के लिए उसके पास बहुत कुछ नहीं और पार्टी नहीं चाहती कि वहां के चुनावी प्रदर्शन की छाया उप्र पर पड़े। वर्ष 2026 में होने वाले उप्र पंचायत से भी पार्टी दूरी बनाएगी, ऐसी खबरें आ रही हैं। राजनीति के गलियारों में यह चर्चा आम है कि सपा ने बिहार चुनाव से दूरी बनाकर अपनी कमजोरी साबित की है।

चुनावी नतीजों के रूझान में बसपा को एक सीट पर लीट मिलती दिख रही हैं। वहीं सुभासपा कहीं दौड़ में नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार सुशील शुक्ल के मुताबिक, बिहार के नतीजे यूपी के लिए एक पूर्वाभ्यास के रूप में काम करेंगे और भविष्य की राजनीतिक दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।