प्रकाश ज्ञान है। तमस गहन अंधकार है। प्रकृति सदा से है। सूर्य प्रकृति है देवता है। दीप रश्मियां जीवन को करती आलोकित हैं। भारत में दिए का इतिहास गुफाओं में भी पाया गया है। यह इतिहास लगभग पांच हजार वर्षों से अधिक का है। दियों को मोहनजोदड़ो में ईंटों के घरों में भी जलाया जाता था। खुदाई में मिट्टी के पके दिये मिले हैं। दीपो हरतु में पापं संध्या दीप नमोस्तुते। अर्थात दीपक की ज्योति परब्रह्म है। ज्योति ही जनार्दन है। यह दीपक मेरे पापों का हरण करें, संध्या के दीपक को नमस्कार है। सिंधु कालीन सभ्यता में खुदाई में दीये मिले हैं। शुरुआती दीये पत्थरों को तराश कर बनाए गए हैं। सतयुग और द्वापर में भी दीपक का उल्लेख है।
ऋषि अष्टावक्र ने राजा जनक को बताया “ज्योतिरेकं”। सभी ज्योतियों प्रकाशों में वह एक” हैं। यह शब्द शुक्ल यजुर्वेद शिव संकल्प सूक्त का है। यह मन को संदर्भित करता है, जिसे इंद्रियों का प्रकाशक और संचालक माना जाता है। यह एक ऐसा मन है जो शक्तिशाली है।
“असतो मा सदगमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय। हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। यह ऋचा हम सबको सभी प्रकार के अज्ञान से ज्ञान, सत्य और आध्यात्मिक प्रकाश के मार्ग पर जाने को प्रेरित करती है। मेरे भीतर का अहंकार समाप्त हो। वह अहंकार धन का पद का क्रोध लोभ मोह का जो अंधकार है विदा हो जाए। भौतिक सुख आनंद से परमानंद की यात्रा में उतर जाएं। प्रार्थना की जा रही है आत्म प्रकाश की। वह लौ वह प्रकाश वह अंतस का दिया एक बार दीप्तिमान हो जाए। यह सूर्य चंद्रमा, पृथ्वी आकाश नक्षत्र यह जो जगती में जगत दिखाई पड़ता है उसका वास्तविक बोध हो जाए कि हम कौन हैं।
गीता में कृष्ण कहते हैं अर्जुन से जो जन्मा है उसे मारना ही पड़ेगा। शरीर नश्वर है। भौतिक शरीर के विनाश से दुखी नहीं होना चाहिए। कृष्ण यह भी कह रहे हैं कि हम शरीर नहीं आत्मा हैं। और आत्मा अमर है। आत्मा जीवन अनुभव करती है। उसका कोई अंत नहीं है। कृष्ण कह रहे हैं कि धर्म के अनुरूप आचरण करें। मोह ने में न गिरें। गीता “अध्याय 11 श्लोक 12 विश्वरूप दर्शन योग” में अर्जुन कह रहा है अगर आकाश में एक साथ हजारों सूर्यों का उदय हो जाए तो भी उन सबका प्रकाश मिलकर उस “विराट रूप परमात्मा” के समान नही हो सकता। उस दिव्य प्रकाश को निरुपम कहा गया है। वह अलौकिक है। श्री राम ज्ञान को धर्म नैतिकता कर्म के रूप में देखते हैं। वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। वह कहते हैं सत्य दया करुणा और दूसरों के अवगुणों में गुण देखना सब में ब्रह्म का साक्षातकार करना ही ज्ञान है प्रकाश है। दीपावली के दो दिन पूर्व आरोग्य के देवता धन्वंतरि का पूजन अर्चन होता है। दीवाली पर्व की देवी लक्ष्मी हैं। देवता गणेश हैं।
कन्नौज के राजा हर्ष ने संस्कृत में लिखे अपने नाटक “नागानंद” में दिवाली को “दीपप्रतिपादोत्सव” कहा है। राजशेखर ने काव्य मीमांसा में दीपावली को दीप मालिका कहा है। कवि सोहनलाल द्विवेदी ने दीपावली पर जगमग कविता लिखी है। माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा मैं दीप तुम्हारे पथ का हूं। सुमित्रानंदन पंत,सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, अज्ञेय,नागार्जुन सहित अनेक साहित्यकारों, कथाकारों ने दीपोत्सव को अपने गहन गम्भीर शब्द दिए हैं। जैन धर्म में महावीर के निर्वाण उत्सव के रूप में दीपावली मनाई जाती है। जैन धर्म मे मोक्ष प्राप्त करने का दिन है। अज्ञान से प्रकाश की जीत के रूप में मनाया जाता है।
भगवान महावीर को चिन्मय दीपक कहा गया है। बाल्मीकि रामायण में श्री राम के 14 वर्ष बाद विजयी अयोध्या आगमन पर सब हर्षित हैं। अयोध्या में यह बहुप्रतीक्षित राम के राज्याभिषेक का उत्सव दीपोत्सव के रूप में मनाया गया था। तब से यह अलोकधर्मा पर्व की संस्कृति का प्रवाह दीपावली चल रहा है। दीपक पांच तत्वों से मिलकर बनता है पृथ्वी( माटी)जल, वायु, आकाश और अग्नि का प्रतीक है। पारसी धर्म में भी पवित्र अग्नि पवित्रता और सत्य निष्ठा का प्रतीक है। सर्वोच्च देवता की शक्ति की उपस्थिति का आधार है। दीपक जलने से देवता प्रसन्न होते हैं। प्रसिद्ध संत पलटू ने अपनी कुंडली में कहा है दीपक बारा नाम का। बाद में ओशो रजनीश ने “दीपक बारा नाम का” पर अपने प्रवचन किये। दीपक को व्यक्ति के भीतर के ज्ञान के प्रकाश के रूप में वर्णित किया गया है। यह सब ज्ञान उस व्यक्ति के नाम यानी उसकी आत्मा में छिपा है। कबीर दीपक को कहते हैं गुरु ज्ञान दीपक है। गुरु अंधियारा मिटाता है। प्रकाश को लाता है।
दीपावली को बाजार उत्सव बनाने की होड़ है। कंपनियों के बम्पर ऑफर के सेल हैं। मीडिया में विज्ञापन हैं। वे आकर्षित करते हैं। पुराना सोना से नया बदलने का प्रचार है। सोना पुराना हो जाता है इसकी चर्चा में स्वर्ण आभूषण कंपनियों के लालच हैं। सीलबंद, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ परोसे जा रहें। कंपनियों के माल के एक नम्बर होने गारंटी है? भारत की परम्परागत मिठाइयों में मिलावट बताई जाती है। कई बार मिलावट पाई भी जाती है। बहुराष्ट्रीय कम्पनी औऱ किसी बड़ी कंपनी के किसी खाद्य पदार्थ के नमूने में मिलावट की खबर अभी तक नही आई? मतलब जो बड़ी कम्पनी वह अच्छी जो गांव गली नगर की निर्मित खाद्य वस्तु वह ठीक नही है क्या? उसका कारण कारपोरेट जगत की पकड़ है पूरे तंत्र पर। इस तंत्र ने वस्तुओं को घर पहुंचा देने के डिलेवरी ब्वाय रखे हैं। अब कम्पनी आपके आ घर रही है। कुछ दशकों से सभी उत्सवों के साथ दीपावली में भी परिवर्तन आया है।
पूर्व में दीपावली में माटी के दीये और कलश घड़े कुंभकार ही बनाते थे। वही घर-घर पहुंचाते थे। कुम्हारों सहित सभी शिल्पकारों का बड़ा आदर था। अब प्रजापति समाज का आदर भी घटा है। वैदिक काल में कुंभकार, विश्वकर्मा सहित शिल्पियों का सम्मान था। अब मिट्टी के दीये के स्थान पर मोमबत्तियां आई। फिर चीन ने बिजली की रंग बिरंगी झालरें बाजार में उतार दी। चीन ने मूर्तियों के लिए भी भारत को अपना बाजार बनाया। अन्य उपभोक्ता वस्तुओं का भी चीन बड़ा आपूर्तिकर्ता है। कुंभकार भारत सनातन संस्कृति स्थापित स्तंभ रहे हैं। सरकारों ने उनकी उपेक्षा की। जिन तालाबों से वह मिट्टी लाते थे उनमें अवैध कब्जे हुए। सरकारों ने तालाबों के मछली पालन के लिए पट्टे कर दिए। इससे कुम्हार परिवारों के सामने माटी का संकट आ गया। वे शहर की ओर पलायन करने लगे। कुछ तालाब कुंभकार को दिए भी जाने लगे मगर तब तक देर हो चुकी थी। अनेक कुम्हार परिवार रोजी रोजगार के लिए बड़े नगरों की ओर पलायन कर गए कुम्हारों को प्रजापति कहा गया है। हो सकता है वह प्रजापति दक्ष के संबंधी रहे हों। और अब मिट्टी के घड़े की तरह टूट गए। बिखर गए। धीरे-धीरे कुम्हार कुंभकार की संस्कृति के साथ उनकी शिल्प संस्कृति का क्षरण हो रहा है। प्राचीन शिल्प संस्कृति को संजोने की जरूरत है। दीपावली तमस से प्रकाश की यात्रा है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)