धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा कि जब मैं ल्हासा में था, तब मैंने दार्शनिक परंपरा का अध्ययन किया और चुनौतीपूर्ण और प्रतिक्रियात्मक दोनों दृष्टिकोणों से वाद-विवाद का अभ्यास किया। उन्होंने कहा कि जब हम अध्ययन करते हैं, तो हम अपने मन का प्रयोग करते हैं। मेरे मामले में जब मैं अध्ययन कर रहा था, तो मैंने भी अपने मन का प्रयोग किया। बेशक जब मैं बचपन में अध्ययन करता था, तो उसमें एक डर भी शामिल था क्योंकि मुझे डर था कि मेरे शिक्षक मुझे दंड दे सकते हैं। वैज्ञानिक हमारी बौद्ध परंपराओं में निहित तर्क, ज्ञानमीमांसा और आलोचनात्मक चिंतन का लाभ उठा सकते हैं। वे इनसे लाभान्वित हो सकते हैं। इन दिनों मैं हर सुबह उठते ही बोधिचित्त की साधना करता हूं और प्रार्थना करता हूं कि जो लोग मुझ पर भरोसा करते हैं, वे सब कुशल मंगल हों। मेरा जीवन पूरी तरह से दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित है। मैं एक साधु वेशधारी धार्मिक नेता हूं, लेकिन जब मैं कोई व्याख्यान देता हूं तो अक्सर विज्ञान का सहारा लेता हूं। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम जिस आलोचनात्मक चिंतन में संलग्न होते हैं वह वैज्ञानिक अन्वेषण के समान है। जैसे ही हम अपनी मां से जन्म लेते हैं, अनुभव शुरू हो जाते हैं। हमारी भावनाएं चेतना में निहित होती हैं। इसलिए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि मन कैसे काम करता है, क्योंकि जीवन मन पर ही आधारित है।
गौरतलब है कि 29वां माइंड एंड लाइफ संवाद धर्मशाला में आयोजित हुआ। इस मौके पर 120 से अधिक वैज्ञानिक, विद्वान, चिंतनशील साधक, व्यापारिक नेता, नीति निर्माता और अन्य लोग मन की प्रकृति और कृत्रिम बुद्धिमत्ता की संभावनाओं व चुनौतियों का अन्वेषण करने के लिए एकत्रित हुए। उनके साथ तिब्बती शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्थानों के अतिथि भी शामिल हुए। इस कार्यक्रम का आयोजन माइंड एंड लाइफ संस्थान, माइंड एंड लाइफ यूरोप और दलाई लामा ट्रस्ट द्वारा किया गया था।