विदेशी धरती पर भारतीयों पर बढ़ते हमले

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विदेशों में भारतीयों की मौत और हमलों की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। यह अब केवल आंकड़ों या खबरों का विषय नहीं रह गया है, यह भारत की प्रवासी सुरक्षा और वैश्विक प्रतिष्ठा का गंभीर प्रश्न बन चुका है। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप जैसे विकसित देशों में भारतीय छात्रों और प्रवासियों पर हो रहे हमले इस सदी के सबसे दर्दनाक सामाजिक परिदृश्यों में से एक बन गए हैं।

ताजा घटना अमेरिका के टेक्सास राज्य के डलास शहर की है, जहां 27 वर्षीय भारतीय छात्र चंद्रशेखर पोल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। वह हैदराबाद के रहने वाले थे और टेक्सास में डेंटल सर्जरी में मास्टर डिग्री की पढ़ाई कर रहे थे। वह गैस स्टेशन पर अपनी पार्ट-टाइम नौकरी में व्यस्त थे, तभी एक अज्ञात बंदूकधारी ने उन पर गोलियां दाग दीं। अस्पताल ले जाने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

यह खबर जैसे ही भारत पहुंची, हैदराबाद में उनके घर पर कोहराम मच गया। माता-पिता, जिन्होंने बेटे की पढ़ाई के लिए घर गिरवी रख दिया था, अब उसके पार्थिव शरीर के लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। पिता ने कहा, “वह डॉक्टर बनना चाहता था, लेकिन हमें अब सिर्फ उसका शव मिल रहा है।”

तेलंगाना के बीआरएस विधायक सुधीर रेड्डी और पूर्व मंत्री टी. हरीश राव ने परिवार से मुलाकात की और इसे “राज्य की सामूहिक त्रासदी” बताया। हरीश राव ने सोशल मीडिया पर लिखा, “जिस बेटे के ऊंचाइयों तक पहुंचने की उम्मीद थी, उसके लिए अब केवल शोक ही बचा है। राज्य सरकार को तुरंत कदम उठाकर शव को भारत लाना चाहिए।”

पांच सालों में बढ़े विदेशी हमले: डर और असुरक्षा की रेखा

यह घटना किसी अपवाद की तरह नहीं आई। विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों (2021–2025) में भारतीय नागरिकों पर कई हमले हुए हैं, जिनमें अनेक लोगों की हत्या तक कर दी गई।

वर्षवार घटनाओं की संख्या

2021- 29

2022- 57

2023- 86

2024- 91

2025 के आंकड़े अभी आंशिक हैं, लेकिन शुरुआती महीनों में ही कई गंभीर घटनाएं हिंसा की सामने आ चुकी हैं।) इन आंकड़ों में विशेष रूप से चिंताजनक बात यह है कि अकेले 2024 में 30 भारतीय छात्रों की हत्या हुई। इनमें से कनाडा में 16, अमेरिका में 12 और ब्रिटेन व सऊदी अरब में 10-10 मामलों की पुष्टि हुई। यह संख्या बताती है कि विदेशों में भारतीय छात्रों की सुरक्षा कितनी नाजुक हो चुकी है।

विदेशों में हिंसा के नए केंद्र

अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में पिछले कुछ वर्षों में भारतीयों पर हुए हमले नस्ली भेदभाव और अपराध दोनों से जुड़े दिखे हैं।

अमेरिका: डलास, इंडियाना, शिकागो, और ह्यूस्टन जैसे शहरों में भारतीय छात्रों और टैक्सी ड्राइवरों पर हमले हुए हैं। जनवरी 2025 में इंडियाना में एक भारतीय छात्रा पल्लवी राव की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। चंद्र मौली नागमल्लैया नामक भारतीय व्यक्ति की हत्या 10 सितंबर 2025 को डलास, टेक्सास (अमेरिका) में की गई ।

कनाडा: 2024 में ही टोरंटो और ब्रैम्पटन में भारतीय युवकों की हत्याएं हुईं। कुछ मामलों में ‘गैंगवार’ का संदेह जताया गया।

ब्रिटेन और यूरोप: आयरलैंड की राजधानी डबलिन में जुलाई 2025 में 40 वर्षीय भारतीय मूल के व्यक्ति को बेरहमी से पीटा गया, जिससे उसकी मौत हो गई।

ऑस्ट्रेलिया: मेलबर्न में एक 23 वर्षीय भारतीय छात्र पर नस्ली गालियां देते हुए हमला किया गया।

मध्य-पूर्वी देशों में स्थिति अलग है, वहां हत्याओं से अधिक कानूनी जटिलताएं, श्रमिकों के शोषण और सजा-ए-मौत के मामलों ने भारतीयों की सुरक्षा पर सवाल उठाए हैं। यूएई में 29, सऊदी अरब और कुवैत में कई भारतीय नागरिकों को अब भी कठोर दंड का सामना करना पड़ रहा है।

अर्थशास्त्र और असुरक्षा के बीच भारतीय प्रवासी

हर वर्ष लगभग 15 लाख भारतीय विदेशों में रोजगार या शिक्षा के लिए जाते हैं। इनमें से सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में उच्च शिक्षा और तकनीकी नौकरियों के लिए जाता है। परंतु इस प्रवास के साथ एक मूक संकट भी चलता है, विदेशी समाजों में ‘असमान पहचान’, नस्लीय टिप्पणियां, और सुरक्षा का असंतुलन।

भारतीय छात्र आमतौर पर कम लागत वाले क्षेत्रों में रहते हैं और खर्च पूरा करने के लिए रात में पार्ट-टाइम काम करते हैं, जैसे चंद्रशेखर गैस स्टेशन पर करते थे।

सरकारी रुख और प्रवासी नीति

अप्रैल 2025 में भारतीय विदेश मंत्रालय ने संसद में बताया कि पिछले पांच वर्षों में भारतीय छात्रों पर हुए हिंसक हमलों में 30 छात्रों की मौत हो चुकी है। मंत्रालय ने यह भी कहा कि वह दूतावासों और स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर हरसंभव सहायता प्रदान कर रहा है। विदेश मंत्री ने हाल ही में एक बयान में कहा, “सरकार हर नागरिक की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। दूतावासों को अधिक संवेदनशील बनाया गया है और प्रभावित परिवारों को आर्थिक और कानूनी सहायता दी जा रही है।” हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि केवल सहायता से काम नहीं चलेगा, भारत को ‘प्रवासी सुरक्षा समझौते’ (Diaspora Safety Agreements) जैसी दीर्घकालिक नीति अपनानी होगी।

कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय दबाव की जरूरत

भारत आज वैश्विक स्तर पर बड़ी आर्थिक और रणनीतिक शक्ति है, परंतु जब उसके नागरिकों पर विदेशी धरती पर बार-बार हमले होते हैं, तो यह उसकी कूटनीतिक क्षमता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। क्या भारत इन देशों से औपचारिक रूप से सुरक्षा की गारंटी मांग सकता है? क्या नस्लीय हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर दबाव बनाया जा सकता है? विशेषज्ञों के अनुसार, अब भारत को केवल “मामले की जांच” या “दूतावास की निगरानी” से आगे जाकर इन देशों के साथ संयुक्त सुरक्षा पहल करनी चाहिए।

विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों के लिए सुरक्षा ऑडिट, रात के कार्यस्थलों के लिए स्थानीय पुलिस की निगरानी और “इंडियन हेल्पलाइन” जैसी व्यवस्थाएं तत्काल आवश्यक हैं। यानी ऐसा कॉमन संपर्क नंबर कि दुनिया के किसी भी देश में भारतीय संकट की स्‍थ‍िति में उस नंबर को डायल कर सकें और वहां से संबंधित देश के साथ समन्‍वय स्‍थापित कर तत्‍काल सहायता जरूरतमंद भारतीय तक पहुंचाई जा सके। हालांकि भारत ने हाल के वर्षों में MADAD पोर्टल, प्रवासी सहायता मिशन और हेल्पलाइन जैसी व्यवस्थाएं शुरू की हैं, लेकिन इनका प्रभाव सीमित रहा है। इसलिए जरूरत है, विदेशों में भारतीय छात्रों के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल अनिवार्य बनाए जाएं।

प्रत्येक विश्वविद्यालय में भारतीय छात्र समन्वयक (liaison officer) नियुक्त हों। रात्रिकालीन कार्यस्थलों की सुरक्षा जांच भारत और स्थानीय प्रशासन संयुक्त रूप से करें। मृतक परिवारों को समयबद्ध मुआवजा और पुनर्वास सहायता मिले।

सपनों की कीमत इतनी महंगी क्यों?

चंद्रशेखर पोल की मौत उस हकीकत की याद दिलाती है कि “विदेश जाना” केवल अवसर नहीं, बल्कि जोखिम भी है। पिछले पांच वर्षों में सैकड़ों भारतीयों की मौत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रवासी सुरक्षा को केवल कूटनीति का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाना होगा। हर लौटता हुआ ताबूत भारत के लिए एक संदेश है कि उसके नागरिक जहां भी जाएं, उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी देश की भी है। जब तक भारत इस संकट को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गंभीरता से नहीं उठाता, तब तक चंद्रशेखर जैसे युवाओं की बलि इसी तरह चढ़ती रहेगी। भारत को अब यह तय करना होगा कि वह अपने प्रवासियों के लिए केवल संवेदना भेजेगा या उनकी सुरक्षा के लिए ठोस वैश्विक व्यवस्था स्थापित करेगा ?