श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत रविन्द्र पुरी महाराज ने बताया कि दशहरे के दिन हम अपने देवताओं और शस्त्रों की पूजा करते हैं। आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने राष्ट्र की रक्षा के लिए शास्त्र और शस्त्र की परंपरा की स्थापना की थी।हमारे देवी-देवताओं के हाथों में भी शास्त्र-शस्त्र दोनों विराजमान हैं। उन्होंने कहा कि महानिर्वाणी अखाड़े की प्राचीन परंपरा के अनुसार अखाड़े के रमता पंच नागा संन्यासियों द्वारा शस्त्रोंं का पूजन किया गया। उन्होंने बताया कि सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश हमारे भाले हैं, जिनको हम कुंभ मेले में स्नान कराते हैं और फिर उनका पूजन करते हैं।
शंकराचार्य द्वारा संन्यासियों को शास्त्र और शस्त्र में निपुण बनाने के लिए अखाड़ों की स्थापना की गई थी, जिससे धर्म की रक्षा की जाए। उन्होंने कहा कि जो संन्यासी शास्त्र में निपुण थे, उनको शस्त्रों में भी आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा निपुण किया गया, इसलिए शास्त्र के साथ शस्त्रों की पूजा भी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि सन्यासी शास्त्र की मर्यादा के अनुरूप जीवन यापन करते हैं, किंतु राष्ट्र रक्षा और धर्म रक्षा के लिए समय आने पर वह शस्त्र उठाने से पीछे नहीं हटते, इस कारण शास्त्र के साथ शस्त्र पूजन की भी परंपरा है।
आचार्य अवधेश शर्मा द्वारा कराए गए शास्त्र पूजन के दौरान श्रीमहंत रविन्द्र पुरी, श्रीमहंत विनोद गिरी उर्फ हनुमान बाबा, मनोज गिरी, ज्ञान भारती, हरिशंकर गिरी, सूर्य मोहन गिरी, किशुन पुरी, प्रेमपुरी, राजेंद्र भारती, दरोगा, विक्रम गिरी, महंत गंगा गिरी समेत अनेक संत, महंत मौजूद रहे।