सिरमौर के गिरीपार जनपद क्षेत्र में मक्की से भूना हुआ सत्तू किया जाता है तैयार

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सत्तू तैयार करने के लिए आज भी गांवों में पारंपरिक “भाट” (मिट्टी व पत्थर से बना चूल्हा) का उपयोग होता है। मक्की को भूनने के बाद इसे पंचक्की (घराट) में पीसकर सत्तू बनाया जाता है।

किसान विजय कुमार बताते है “भुना हुआ सत्तू बेहद पौष्टिक होता है, इसे खाने से किसी भी तरह की बीमारी पास नहीं आती। सत्तू का स्वाद लस्सी, गुड़, राब और चटनी के साथ और भी बढ़ जाता है।”

विजय कुमार आज़ाद व रूद्रीदत शर्मा का कहना है कि बुजुर्गों की परंपरा के अनुसार फसल कटाई के बाद 10 से 15 घिल्ले मक्की सत्तू के लिए अलग रखे जाते थे। इसके साथ खरॉवकी भी बनाई जाती थी, जो सर्दियों में “मुड़े” के साथ खाई जाती है। खास बात यह कि मुड़े में अखरोट मिलाकर खाने से यह बेहद गुणकारी और स्वादिष्ट बन जाता है।गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री एवं प्रदेश निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार ने विदेश यात्राओं के दौरान मक्की के सत्तू का विशेष उल्लेख किया था। उन्होंने सम्मेलन में बताया कि सिरमौर की पहाड़ियों में किसान मक्की को एक बार भूनकर पूरे साल सुरक्षित रखते हैं और इसे पौष्टिक आहार के रूप में इस्तेमाल करते हैं। यह सुनकर सम्मेलन में मौजूद लोग हैरान रह गए थे।गांवों में आज भी सामूहिक रूप से भाट बनाए जाते हैं। किसान मिलकर अपनी मक्की से सत्तू और खरॉवकी तैयार करते हैं