रोहिंग्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्प्णी के बाद अब कुछ शेष नहीं
डॉ. मयंक चतुर्वेदी
भारत में मानवाधिकारों की आड़ में रोहिंग्याओं को बसाने का एक चक्र लम्बे समय से चल रहा है। जबकि वे भारत में आकर यहां के संसाधनों का भरपूर उपयोग तो कर ही रहे हैं, साथ ही भारतीयों के साथ किए जा रहे उनके दुर्व्यवहार के अनेक प्रकरण सामने आ रहे हैं। ऐसे में केंद्र की मोदी सरकार रोहिंग्या समस्या को लेकर सख्त है, किंतु ये मानवाधिकारवादी हैं कि भारत पर रोहिंग्याओं का अरिरिक्त बोझ मानवता के नाम पर डालने से पीछे नहीं हट रहे। अब सर्वोच्च न्यायालय ने जिस प्रकार की टिप्पणी इन रोहिंग्या को लेकर की है, यथा; ‘यदि भारत में मौजूद रोहिंग्या शरणार्थी भारतीय कानून के तहत विदेशी पाए जाते हैं तो उन्हें निर्वासित किया जाना चाहिए।’ तब इसके बाद कुछ कहने को शेष नहीं बचता। ऐसे में इन्हें अतिशीघ्र भारत से बाहर किया जाना चाहिए।
देखा जाए तो आज जो सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है, इससे पूर्व भी उसका अभिमत यही था। तब केंद्र सरकार ने न्यायालय के सामने स्पष्ट कर दिया था कि आखिर क्यों ये “रोहिंग्या मुस्लिम प्रवासी” भारत में नहीं रह सकते हैं। वर्ष 2021 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि रोहिंग्याओं का भारत में अवैध रूप से रहना देश की सुरक्षा के लिए खतरा है। इसलिए अवैध तरीके से भारत में रहने वालों के खिलाफ कानून के अंतर्गत कार्रवाइयां की जाती रहेंगी। यहां केंद्र सरकार इतना कहकर ही नहीं रुकी । सरकार ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वालों को शरणार्थी का दर्जा दिलाने के लिए संसद और कार्यपालिका के विधायी और नीतिगत डोमेन में नहीं जा सकती। वहीं, यह भी स्पष्ट किया गया था कि भारत यूएनएचआरसी के शरणार्थी कार्ड को कोई मान्यता नहीं देता है, जिसकी मदद से कुछ रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी के दर्जे के लिए दावा कर रहे हैं।
साथ ही केंद्र की मोदी सरकार ने तत्कालीन समय में कोर्ट को यह भी बताया था कि किस हद तक भारत पहले ही बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठ का सामना कर रहा है, जिसके चलते कुछ सीमावर्ती राज्यों (असम और पश्चिम बंगाल) की जनसांख्यिकी प्रोफाइल बदल चुकी है। तब सरकार से जवाब से कोर्ट संतुष्ट नजर आई थी, और उसने केंद्र सरकार के पक्ष में ही फैसला सुनाया था। अब देखो; न्यायालय में इतना गहराई से स्पष्ट करने के बाद भी ये रोहिंग्याओं से जुड़े मामले हैं कि बंद होने का नाम नहीं ले रहे।
वस्तुत: आज फिर इस मामले में उच्चतम न्यायालय मुखर हुआ है। न्यायालय ने देश में रोहिंग्याओं की जीवन स्थितियों और उनके निर्वासन की मांग से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए एक बार फिर अनेक टिप्पणियां की हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने अपने पुराने आदेश का हवाला देते हुए स्पष्ट कहा है, ‘शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) द्वारा जारी पहचान पत्र उनके लिए कोई मददगार नहीं हो सकते हैं।’ वास्तव में “यदि वे विदेशी अधिनियम के अनुसार विदेशी हैं, तो उन्हें निर्वासित किया जाना चाहिए।”
कहना होगा कि एक बार फिर आज सुप्रीम कोर्ट में वही दृष्य उभरा जो वर्ष 2021 में सामने आया था। अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेस और अधिवक्ता प्रशांत भूषण रोहिंग्या शरणार्थियों की ओर से पेश हुए और अदालत को यूएनएचसीआर कार्ड का आधार लेकर रोहिंग्याओं के बच्चों और म्यांमार सरकार के वर्तमान रुख का हवाला देकर समझाना चाहा कि भारत में इन अवैध प्रवासी रोहिंग्याओं को रहने दिया जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिर से स्पष्ट कर दिया है कि भारत सरकार को इन्हें निर्वासित करने का पूरा अधिकार है। इन्हें तत्काल निर्वासित किया जाए। अत: अब जरूरी हो जाता है कि जितनी जल्दी हो सके, इन्हें चिह्नत कर भारत से बाहर का रास्ता दिखाया जाए।
अब यहां उन्हें समझना होगा जिन्हें मानवाधिकार के नाम पर इन रोहिंग्याओं से हमदर्दी है। वास्तव में उन्हें इन रोहिंग्याओं का इतिहास जरूर देखना चाहिए। ये वही रोहिंग्या हैं, जिन्होंने अपने ही देश म्यांमार में बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के खिलाफ अत्याचार किए। नतीजतन, शांतिप्रिय बौद्धों को हिंसा का सहारा लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। इन रोहिंग्याओं ने जो अपनी अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी बनाई, उसके अत्याचार की लिस्ट बहुत लंबी है। म्यांमार की सेना को इनके कब्जे वाले क्षेत्र में हिंदुओं और बौद्धों की सामूहिक कब्रें मिल चुकी हैं। इन्होंने भयंकर क्रूरता से अपने अधिकार क्षेत्र में बौद्ध और हिन्दुओं का सामूहिक नरसंहार किया है। इस नरसंहार के दौरान रोहिंग्या मुसलमानों ने कुछ महिलाओं को तभी छोड़ा जब उनका इस्लाम में धर्मांतरण करा दिया गया। बाकी सभी को मारकर दफना दिया गया था।
म्यांमार में जब रोहिंग्याओं का अत्याचार बढ़ने लगा तो सरकार ने अपने देशवासियों के लिए कई सख्त कानून लागू किए, जिनमें विवाह, परिवार नियोजन, आवागमन की स्वतंत्रता, रोजगार, शिक्षा, धार्मिक विकल्प आदि शामिल थे। जिसमें ये रोहिंग्या फिट नहीं बैठ पाए और यहां से पलायन करने लगे। सबसे पहले उन्होंने अवैध रूप से भारत में प्रवेश करना शुरू किया। कई बांग्लादेश पहुंच गए। वहीं, इन रोहिंग्या मुसलमानों के आतंकवादी संगठन अका-उल-मुजाहिदीन के पाकिस्तान में इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई), जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) और लश्कर-ए-तैयबा के साथ संबंधों का खुलासा कई बार हो चुका है। इनमें से कई हैं जो इस्लामिक आतंकवादियों को हर संभव मदद पहुंचाते हैं। अब तक भारत के अलग-अलग राज्यों में अनेक घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें कई रोहिंग्या मुसलमान अपराधों में शामिल पाए गए हैं।
दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात (नूंह), उत्तराखंड के हल्द्वानी और बनभूलपुरा क्षेत्र में हुए हिंसक दंगों में रोहिंग्या मुसलमानों की संलिप्तता सामने आ चुकी है। अकेले बनभूलपुरा क्षेत्र में ही आज करीब 8000 रोहिंग्या मुसलमान व अन्य बाहरी लोग रह रहे हैं। आज बांग्लादेश के रास्ते भारत में घुसे रोहिंग्याओं ने भारत और नेपाल के मैदानी और पहाड़ी दोनों इलाकों में अपनी अवैध बस्तियां बनाना जारी रखा है। हजारों की संख्या में ये रोहिंग्या हमारे देश में घुस चुके हैं। फिर भी भारत में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं, जो मानवाधिकार के नाम पर इन अपराधी रोहिंग्याओं की वकालत कर रहे हैं। वे उन्हें भारत में स्थायी रूप से बसाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर कर रहे हैं और भारत सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। अब ऐसे में हो यह कि केंद्र सरकार अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वालों के साथ सख्ती से विदेशी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार निपटे। वस्तुत: आज जो सुप्रीम कोर्ट में इन रोहिंग्याओं के समर्थन में खड़े हो रहे हैं, उन अधिवक्ताओं को भी समझना चाहिए कि भारत कोई अराजक भूमि नहीं है, जहां, जब, जिसकी इच्छा हो वह घुस आए और यहां के मूल निवासियों के हकों को वह छीनने लगे।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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