381 करोड़ की रकम पर मचे हंगामे में फंसे महेश-जोशी! ED की पूछताछ में बड़े खुलासे?

Share

राजस्थान में हाल ही में हुए 980 करोड़ रुपये के जल जीवन मिशन (जेजेएम) घोटाले की परतें खुलने का सिलसिला जारी है। यह मामला तब और जटिल होता जा रहा है जब पता चला है कि पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान आचार संहिता लगने से महज तीन दिन पहले ठेकेदारों को लगभग 381 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी गई थी। यह स्वीकृति इतनी तेजी से मिली कि फाइलें एक दिन में कई महत्वपूर्ण अधिकारीयों के साइन के बाद सीधे तत्कालीन मुख्य सचिव तक पहुंच गई। इसके बाद अगले दिन सुबह सरकार के हस्ताक्षर के साथ ठेकेदारों को भुगतान का रास्ता साफ हो गया।

प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच में सामने आया है कि इस घोटाले में ठेकेदारों के माध्यम से अधिकारियों और दलालों ने करोड़ों रुपये की कमीशन ली थी। ED ने पिछले दिनों पूर्व कैबिनेट मंत्री महेश जोशी से 6 घंटे सवाल-जवाब किए, जिसमें 381 करोड़ रुपये के इस भुगतान की स्वीकृति को लेकर भी चर्चा हुई। जोशी से यह लगातार सवाल किया जाएगा कि अचानक इस भुगतान की इतनी जल्दी क्यों थी? क्या इस प्रक्रिया में किसी बड़े राजनीतिक व्यक्तित्व का दबाव था? यही वजह है कि इस जांच में ज्यादा से ज्यादा गहराई से सवाल उठाए जा रहे हैं।

राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो राजस्थान में विधानसभा चुनावों के लिए आचार संहिता की चर्चा अक्टूबर 2023 की शुरुआत में हुई थी, और आचार संहिता 9 अक्टूबर को लागू हुई। इसके पूर्व ही ठेकेदारों को बड़े आर्थिक भुगतानों के लिए स्वीकृति दी गई, जिसमें जयपुर सहित विभिन्न जिलों में पाइपलाइन, पंप हाउस और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिए 381 करोड़ रुपये का भुगतान शामिल था। यह बात ध्यान देने योग्य है कि 4 अक्टूबर, 2023 को एक ही दिन में कई प्रमुख अधिकारियों ने इस फाइल पर साइन किए थे, जो प्रक्रिया को संदेह के दायरे में लाता है।

ED के अधिकारियों का कहना है कि आचार संहिता के पहले स्वीकृतियों को आचार संहिता के दौरान रोका नहीं जा सकता, फिर भी ऐसे ठेकेदारों को भुगतान मिलना कई अनियमितताओं को दर्शाता है। हाल ही में महेश जोशी को ED ने गिरफ्तार किया है, जिन्होंने तीन बार समन जारी होने के बावजूद पूछताछ के लिए उपस्थित नहीं हुए थे। जोशी का आरोप है कि उन्हें व्यक्तिगत कारणों से पेश नहीं हो पाने का बहाना करने के लिए मजबूर किया गया था। ऊँचे स्तर पर जुड़े कुछ नामों के चौंकाने वाली जानकारी से इस मामले में गहराई आएगी।

महेश जोशी के अधिवक्ता का कहना है कि ED ने मौजूदा धाराओं के अंतर्गत कोई ठोस आधार नहीं प्रस्तुत किया है। वे कहते हैं कि केवल 50 लाख की राशि जो जोशी के बेटे की कंपनी में जमा की गई थी, वह ED के लिए पर्याप्त नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि महेश जोशी ने किसी भी ठेकेदार से रिश्वत नहीं ली थी। इस जटिल मामले के ताने-बाने में महेश जोशी के करीबी संपर्क और उच्च अधिकारियों की मिलीभगत का मामला भी सामने आ रहा है, जिससे भविष्य में और भी नाम सामने आ सकते हैं।