देहरादून, 07 दिसंबर । आज की बदलती लाइफ स्टाइल के चलते लोग बाहर के खाने पर ज्यादा निर्भर होते जा रहे हैं। खासकर युवा पीढ़ी में बाहर के खाने का चलन तेजी से बढ़ा है, जिसका दुष्प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। चिंताजनक यह है कि होटल, रेस्टोरेंट और ढाबों में एक बार इस्तेमाल हो चुके खाद्य तेल को पुनः उपयोग करने की प्रवृत्ति आम होती जा रही है। शोध बताते हैं कि बार-बार गर्म किए गए तेल में हानिकारक रसायन बनते हैं, जो हृदय रोग, कैंसर और उच्च ट्रांस फैट जैसी स्थितियों का खतरा कई गुना बढ़ाते हैं। इस गंभीर समस्या को ध्यान में रखते हुए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने वर्ष 2018 में देशव्यापी आरयूसीओ (रिपरपज यूज्ड कुकिंग ऑयल) मिशन की शुरुआत की थी, जिसमें उत्तराखंड ने पिछले पांच साल में बड़ी सफलता हासिल की है।
उत्तराखंड खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) के अपर आयुक्त ताजबर सिंह जग्गी के अनुसार तेल को दोबारा गर्म करने पर उसमें एल्डिहाइड्स और अन्य जहरीले यौगिक तेजी से बनते हैं। इन रसायनों से शरीर की कोशिकाएं नष्ट होती हैं और कैंसर सहित कई बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा यह ट्रांस फैट की मात्रा में भी तीव्र वृद्धि करता है, जो हार्ट अटैक और हाई ब्लड प्रेशर का एक बड़ा कारण है। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की 2022 की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि शहरी भारत में लगभग 60 प्रतिशत खाना पकाने वाला तेल एक बार उपयोग होने के बाद भी दोबारा बिक्री या पुनः उपयोग के माध्यम से खाद्य श्रृंखला में वापस आ जाता है। यह आंकड़ा स्वास्थ्य संकट की गंभीर चेतावनी है।
प्रदेश के स्वास्थ्य सचिव एवं आयुक्त एफडीए डॉ. आर. राजेश कुमार के नेतृत्व में राज्य में मिशन मोड में अभियान चलाए गए। फूड बिजनेस ऑपरेटरों, एफडीए अधिकारियों, एग्रीगेटर, रीसायकलर, होटल-रेस्टोरेंट संचालकों, छात्र समूहों और स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ व्यापक जन-जागरूकता अभियान चलाए गए। कैफे टॉक्स, कार्यशालाएं, प्रशिक्षण सत्र और मीडिया संवादों ने इस अभियान को सामाजिक आंदोलन का स्वरूप दिया
अपर आयुक्त जग्गी के अनुसार 2019 में प्रदेश में शुरू हुए आरयूसीओ मॉडल में जहां पहले चरण में महज 600 लीटर इस्तेमाल किया गया तेल एकत्र हुआ था, वहीं पांच वर्षों में यह संख्या बढ़कर 1,06,414 किलो तक पहुंच गई। यह उपलब्धि इस बात का प्रमाण है कि उत्तराखंड ने इस मिशन को न सिर्फ अपनाया बल्कि इसे जमीनी स्तर पर प्रभावी रूप से लागू भी किया। 2025 की चारधाम यात्रा को भी इसी थीम पर आयोजित किया गया।
यात्रा मार्ग पर खाद्य तेल के पुनः उपयोग को रोकने के लिए खाद्य कारोबारियों को प्रशिक्षित किया गया, जागरूकता कार्यक्रम चलाए गए और इसमें कुल 1,200 किलो इस्तेमाल किया गया तेल एकत्र कर इसे बायोफ्यूल में परिवर्तित किया गया। इस पूरी पहल ने न सिर्फ स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित की बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस अभियान की सफलता का श्रेय सरकारी तंत्र के साथ-साथ खाद्य कारोबारियों और आम जनता की सक्रिय भागीदारी को भी जाता है।
उत्तराखंड खाद्य संरक्षा एवं औषधि प्रशासन आगामी वर्षों में इस मुहिम को और तीव्र गति से आगे बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। यह दून मॉडल ईट राइट इंडिया और आरयूसीओ (रिपरपज यूज्ड कुकिंग ऑयल) पहल के तहत विकसित एक अभिनव प्रणाली है। राज्य एफडीए अब इसे गढ़वाल और कुमाऊं में चरणबद्ध तरीके से लागू करने जा रहा है। मॉडल का लक्ष्य खाद्य सुरक्षा, स्वच्छता और उपयोग किए गए खाना पकाने के तेल के सुरक्षित पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के स्पष्ट निर्देश हैं कि किसी भी स्थिति में जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस्तेमाल किए गए तेल का दोबारा उपयोग रोकने का अभियान केवल नियम लागू करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नागरिकों की सेहत बचाने का संकल्प है।
स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि एक बार इस्तेमाल होने वाला खाद्य तेल किसी भी हालत में खाद्य श्रृंखला में वापस न जाए। इसके लिए फूड बिजनेस ऑपरेटरों, होटलों, रेस्टोरेंट्स, ढाबों और सभी खाद्य कारोबारियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। आम जनता भी अब इस मुद्दे के प्रति अधिक संवेदनशील हो रही है। अगले चरण में तकनीकी निगरानी, बड़े पैमाने पर संग्रहण तंत्र और बायोफ्यूल निर्माण क्षमता को और मजबूत करेंगे। यह मुहिम केवल स्वास्थ्य सुरक्षा ही नहीं, पर्यावरण संरक्षण का भी महत्वपूर्ण कदम है।
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