इस अवसर पर डॉ. मिश्रा ने सनातन धर्म का विरोध करने वालों पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि “जो लोग सनातन का विरोध कर रहे हैं, वे कीचड़ और लीचड़ के समान हैं। कीचड़ तन खराब करता है और लीचड़ मन खराब करता है इसलिए इनसे दूर रहना ही बेहतर है।” डॉ. मिश्रा ने कहा “सनातन अमृत है। लेकिन जैसे देशी घी, शहद और मिश्री औषधि हैं फिर भी जिन्हें नहीं हजम होती, वे मर जाते हैं वैसे ही सनातन भी अमृत है, लेकिन कई लोगों को हजम नहीं होता।” उन्होंने स्पष्ट किया कि वे किसी की तुलना जानवरों से नहीं कर रहे, बल्कि यह उदाहरण देना चाहते हैं कि सनातन धर्म की महानता इतनी गहरी है कि उसे हर कोई समझ नहीं सकता। डॉ. मिश्रा ने कहा कि “महाराज धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी जो अभियान चला रहे हैं, वह भारत की आत्मा को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास है। सनातन विरोधी समाज में जहर घोलना चाहते हैं, लेकिन सनातन सच्चाई, सद्भाव और आत्मबल का प्रतीक है।