जोधपुर, 29 नवम्बर । राजस्थान हाईकोर्ट ने ट्राइबल सब-प्लान (टीएसपी) क्षेत्र के 63 कांस्टेबलों की ट्रांसफर मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन को उन्हें ट्राइबल इलाकों में तैनात करने के निर्देश दिए हैं। जस्टिस फरजंद अली ने अपने रिपोर्टेबल जजमेंट में कहा कि मिनरल प्रोटेक्शन फोर्स के नाम पर विज्ञापन निकालकर चयन तो ट्राइबल क्षेत्रों के लिए किया गया, लेकिन सभी को जयपुर स्थित 14वीं बटालियन आरएसी में अटका देना वैध अपेक्षाओं के साथ खिलवाड़ है।
दरअसल बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, प्रतापगढ़ समेत दक्षिणी राजस्थान के अनुसूचित व ट्राइबल इलाकों के 63 कांस्टेबल्स ने 10 जुलाई 2019 को राज्य सरकार, एडीजी आम्र्ड बटालियन और 14वीं बटालियन आरएसी कमांडेंट के खिलाफ याचिका दायर की थी। ये सभी याचिकाकर्ता 20 जुलाई 2013 को निकले कॉन्स्टेबल मिनरल प्रोटेक्शन फोर्स के विज्ञापन में टीएसपी श्रेणी के तहत चयनित हुए थे। बाद में इन्हें 19 जनवरी 2016 के आदेश से नियमित नियुक्ति मिली। उनका कहना था कि वे स्थायी रूप से टीएसपी क्षेत्रों के निवासी हैं, फिर भी उनकी नियुक्ति नॉन-टीएसपी कैडर में कर दी गई और आज तक उन्हें ट्राइबल इलाकों में तैनाती नहीं दी गई।
भर्ती में एक हजार पदों में से 80 टीएसपी क्षेत्र के आरक्षित
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में बताया कि 2013 की भर्ती में 1000 पदों में से 80 पद खास तौर पर टीएसपी क्षेत्र के लिए आरक्षित थे। वे उसी श्रेणी में चुने भी गए। इसके बावजूद उन्हें मिनरल/ट्राइबल बेल्ट की बजाय जयपुर आदि नॉन-टीएसपी क्षेत्रों में लगा दिया गया, जबकि बाद में जारी 10 नवंबर 2014, 16 जुलाई 2018 और 30 अगस्त 2018 के सर्कुलर साफ कहते हैं कि टीएसपी निवासी कर्मचारी चाहें तो ट्राइबल इलाकों में ट्रांसफर के लिए विकल्प दे सकते हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उन्होंने समय पर आवेदन दिए, जो 14वीं बटालियन आरएसी से फॉरवर्ड भी हुए, लेकिन आज तक कोई निर्णय नहीं हुआ, जबकि समान परिस्थिति वालों को ट्रांसफर का लाभ मिल चुका है, जो समानता के अधिकार का उल्लंघन है।?
सरकार व पुलिस प्रशासन ने कोर्ट में यह दिया जवाब
राज्य की ओर से पेश जवाब में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति उस समय की मेरिट, रिक्तियों और प्रशासनिक जरूरत के आधार पर नॉन-टीएसपी क्षेत्रों में की गई थी। सरकार ने यह भी कहा कि 2014 और 2018 के सर्कुलर कर्मचारियों को केवल विकल्प देने का मौका रखते हैं, कोई पूर्ण अधिकार नहीं देते। ट्रांसफर हमेशा प्रशासनिक विवेक और सेवा आवश्यकताओं पर निर्भर है। जवाब में यह दलील भी दी गई कि 19 मई 2018 की केन्द्रीय अधिसूचना केवल अनुसूचित क्षेत्रों की नई परिभाषा है, उससे प्रत्येक टीएसपी निवासी कर्मचारी का स्वत: ट्रांसफर का अधिकार नहीं बनता और सीमित रिक्तियों के कारण सभी को समायोजित करना संभव नहीं था।
लीजिटिमेट एक्सपेक्टेशन और ट्राइबल संवेदनशीलता पर टिप्पणी
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब कोई भर्ती विशेष रूप से ट्राइबल/मिनरल क्षेत्रों से जोडक़र निकाली जाती है, तो चयनित उम्मीदवारों के मन में लीजिटिमेट एक्सपेक्टेशन (वैध अपेक्षा) बनती है कि उनकी पोस्टिंग भी उन्हीं इलाकों में होगी। जस्टिस फरजंद अली ने यह भी रेखांकित किया कि याचिकाकर्ता कमजोर एवं वंचित आदिवासी समुदायों से आते हैं, ऐसे में राज्य को उनसे किया गया वादा तोडऩे से पहले संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण रुख अपनाना चाहिए था। हाईकोर्ट ने सभी 63 याचिकाकर्ताओं को ट्राइबल क्षेत्र में भेजने का रास्ता साफ करते हुए निर्देश दिया कि इन सभी को महाराणा प्रताप बटालियन, प्रतापगढ़ में शिफ्ट करने पर विचार किया जाए और यदि प्रशासनिक आवश्यकता हो, तो उन्हें टीएसपी क्षेत्र में आने वाले किसी भी जिले में समायोजित, ट्रांसफर या अस्थायी रूप से तैनात किया जा सकता है। इन निर्देशों के साथ हाईकोर्ट ने रिट पिटीशन को निस्तारित कर दिया।