सुनवाई के दौरान कार्मिक सचिव अर्चना सिंह अदालत में पेश हुई। वहीं पीएचईडी के एसीएस की ओर से पालना रिपोर्ट पेश कर कहा गया कि याचिकाकर्ता को बकाया भुगतान कर आदेश की पालना कर दी गई है। अदालत ने कार्मिक सचिव से पूछा कि अभियोजन स्वीकृति को लेकर सालों से प्रकरण विभाग में क्यों लंबित रहते हैं। इस पर कार्मिक सचिव ने कहा कि वे तीन दिन पहले की तबादला होकर आई हैं। ऐसे मामलों को तत्काल निपटाने की कोशिश की जाएगी। वहीं अदालत ने कहा कि जब अदालत अफसरों को बुलाती है, तभी पालना की जाती है। ऐसे में क्या हर मामले में अधिकारियों को बुलाया जाए। इस दौरान अदालत के सामने आया कि कार्मिक विभाग ने इस मामले को पुनर्विचार के लिए वापस श्रम विभाग को भेजा था। इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यह कानूनी बहस का विषय है कि क्या डीओपी ऐसे मामलों को पुनर्विचार के लिए वापस विभाग को भेज सकता है? इस पर अदालत ने 11 दिसंबर को इस बिंदु पर दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने को कहा है।
याचिका में अधिवक्ता सीपी शर्मा ने अदालत को बताया कि लेबर कोर्ट ने 28 मार्च, 2017 को आदेश जारी कर याचिकाकर्ता को 1 अप्रैल, 1982 से अर्ध स्थाई करने के आदेश दिए थे। इसके बावजूद भी लेबर कोर्ट के आदेश की पालना नहीं की गई। इस पर याचिकाकर्ता ने औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 29 के तहत लेबर कमिश्नर के समक्ष प्रार्थना पत्र पेश किया। लेबर कमिश्नर ने 5 मार्च, 2018 को कार्मिक विभाग को पत्र लिखकर दोषी अफसरों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति जारी करने को कहा। याचिका में कहा गया कि करीब सात साल का समय बीतने के बाद भी कार्मिक विभाग की ओर से लेकर कमिश्नर के पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। कार्मिक विभाग के इस रवैये के चलते ही लेबर कोर्ट के अवार्ड की पालना नहीं हो रही है। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने दोनों अधिकारियों को पेश होकर इस संबंध में स्पष्टीकरण देने को कहा था।