वाराणसी: शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक चले अनुष्ठान, दुर्गापूजा के बाद पारम्परिक सिंदूर खेला

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वाराणसी, 03 अक्टूबर । उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी काशी (वाराणसी) में शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक चले विविध धार्मिक अनुष्ठान और भक्ति भाव से मां दुर्गा की आराधना के बाद शुक्रवार को मां दुर्गा की विदाई के पहले पूजा पंडालों में पारम्परिक सिंदूर खेला की रस्म निभाई गई। गुरूवार की देर शाम भी बंग समाज के पूजा पंडालों में यह भावुक और आस्था से भरा दृष्य दिखा।

वाराणसी शहर के शिवाला, सोनारपुरा, बंगाली टोला, भेलूपुर स्थित जिम स्पोर्टिंग क्लब सहित अन्य पूजा पंडालों में बंगीय समाज की महिलाएं परम्परागत वेशभूषा में पहुंची। पंडाल में सुहागिन महिलाओं ने मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित कर एक-दूसरे के गालों पर भी सिंदूर लगाया। बेटी को विदा करते समय माता-पिता और परिजनों के मन में जो भाव और आंखों में नमी होती है। वहीं भाव मां दुर्गा की विदाई के समय महिलाओं में दिखा। महिलाओं ने एक दूसरे को सिंदूर लगाकर सिंदूर खेला की परम्परा का निर्वाह किया। सभी ने एक दूसरे को सिंदूर लगाकर विजयदशमी की शुभकामनाएं दीं। बंगीय समाज श्यामली मुखर्जी, जोया मुखर्जी, अनुराधा ने बताया कि सिंदूर खेला की परम्परा 400 साल से भी अधिक पुरानी है । पीढ़ियों से बंगाल में ये परम्परा निभाई जा रही है।

मान्यता है कि सिंदूर खेला से पति की उम्र लंबी होती है और अखंड सौभाग्य का मां से आशीर्वाद मिलता है। उन्होंने बताया कि नवरात्र में मान्यता है कि मां दुर्गा भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय के साथ नौ दिनों के लिए मायके आती है। ससुराल से मायके आई बेटी की तरह ही उनका स्वागत और आवभगत की जाती है, और दशहरे को मां दुर्गा अपने ससुराल चली जाती हैं। यह परम्परा काशी सहित अब पूरे देश भर में महिलाएं निभा रही है। सिंदूर खेला से पूर्व मां दुर्गा की प्रतिमा का विधिवत पूजन-अर्चन और आरती की गई। बंगीय समाज के युवाओं ने मां का मुंह मीठा कराया, उलूक ध्वनि निकाली गई। धुनुची नृत्य और जयकारों के बीच पारंपरिक ढाक की थाप पर महिलाओं ने मां की प्रतिमा के चारों ओर फेरे लगाकर अगले वर्ष फिर शीघ्र आगमन की प्रार्थना करती रहीं। इसके बाद दुर्गा मां की प्रतिमाओं को पंडालों से विदाई दी गई और विर्सजन यात्रा निकाली गई।