उल्लेखनीय है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ होकर सप्तमी तक चलने वाला यह चार दिवसीय पर्व इस बार 25 से 28 अक्टूबर तक मनाया जा रहा है। राजधानी भोपाल में नगर निगम और प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पूरी तैयारियां कर ली हैं। घाटों पर साफ-सफाई, रंग-रोगन, मरम्मत, विद्युत साज-सज्जा, चलित शौचालय, चेंजिंग रूम और पेयजल की बेहतर व्यवस्था की गई है।
भोपाल के 52 घाटों पर होगी छठ पूजा
शहर में शीतलदास की बगिया, कमला पार्क, वर्धमान पार्क (सनसेट पॉइंट), खटलापुरा घाट, काली मंदिर घाट, प्रेमपुरा घाट, हथाईखेड़ा डैम, बरखेड़ा और घोड़ा पछाड़ डैम सहित कुल 52 स्थलों पर छठ महापर्व का आयोजन होगा। नगर निगम की टीमें शुक्रवार देर रात तक सफाई और सजावट में जुटी रहीं।
भोजपुरी एकता मंच के अध्यक्ष कुंवर प्रसाद ने बताया कि इस वर्ष लाखों श्रद्धालु अर्घ्य देने घाटों पर पहुंचेंगे। उन्होंने कहा कि “शहर के उत्तर भारतीय समुदाय में छठ का उत्साह चरम पर है। बाजारों में पूजा सामग्री, सूप-दउरा, ठेकुआ मोल्ड, फल और साज-सज्जा के सामान की बिक्री में जबरदस्त तेजी है।” वहीं, शीतलदास की बगिया में भोजपुरी एकता मंच की टीम ने स्वयं सफाई अभियान चलाया और श्रद्धालुओं के स्वागत की तैयारियां कीं।
आचार्य भरतचंद्र दुबे ने हिस से कहा कि छठ पर्व जीवन को अनुशासन, संयम और प्रकृति के प्रति आभार सिखाने वाला उत्सव है। यह पर्व हमें बताता है कि जब हम सूर्य जो हमारे सौर्य मण्डल का जीवनदाता है के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं, तो हम अपने भीतर की ऊर्जा, शुद्धता और कृतज्ञता को भी जगाते हैं।
प्रशासन ने कसी कमर, सुरक्षा के कड़े इंतजाम
प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। घाटों पर पुलिस बल, गोताखोर दल और मेडिकल सहायता केंद्र तैनात रहेंगे। ट्रैफिक पुलिस ने प्रमुख घाटों के आसपास पार्किंग और आवाजाही के लिए विशेष रूट प्लान तैयार किया है। प्रकाश व्यवस्था और बैरिकेडिंग के साथ कंट्रोल रूम भी बनाए गए हैं ताकि किसी आपात स्थिति में तुरंत सहायता उपलब्ध कराई जा सके।
छठ के चार पवित्र दिन तप, भक्ति और शुद्धता की मिसाल
पहला दिन में नहाय-खाय के अंतर्गत व्रती महिलाएं नदी या तालाब में स्नान कर कद्दू-भात का प्रसाद बनाती हैं। यह प्रसाद शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक माना जाता है। परिवार के साथ इस भोजन को ग्रहण करने के बाद ही व्रत की शुरुआत होती है। परंपरा के अनुसार इस दिन लहसुन-प्याज रहित भोजन बनाया जाता है, जिसमें लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल, पापड़, आंवला चटनी और तिलौरी शामिल होते हैं। दूसरा दिन खरना कहलाता है, खरना यानी उपवास और आत्मसंयम का दिन। व्रती पूरे दिन निर्जल उपवास रखती हैं और शाम को भगवान भास्कर की पूजा करती हैं। मिट्टी के चूल्हे पर गुड़-चावल की खीर और गेहूं की रोटी बनाई जाती है, जिसे छठी मैया को भोग लगाया जाता है। इसके बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत प्रारंभ करती हैं। इस दिन का हर आचरण तप और श्रद्धा से भरा होता है।
इसी तरह से सूर्य आराधना का ये विशेष तीसरा दिन डाला छठ, सांझी अर्घ्य में अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। श्रद्धालु नदी या तालाब के घाट पर परिवार सहित पहुँचते हैं। बांस की टोकरी में ठेकुआ, चावल के लड्डू, फल और अन्य प्रसाद सजाया जाता है। व्रती दूध और जल से सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं। ऐसा माना जाता है कि अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने से नेत्रज्योति और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। इस रात घाटों पर लोकगीतों और भजनों की गूंज से वातावरण भक्तिमय हो जाता है और चौथे अंतिम दिवस उषा अर्घ्य और पारण में व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देती हैं और भगवान आदित्य से परिवार के सुख, समृद्धि और आरोग्य की कामना करती हैं। अर्घ्य के साथ ही 36 घंटे का निर्जला व्रत समाप्त होता है। इसके बाद पारण होता है, जिसमें प्रसाद और सात्विक भोजन के साथ व्रत खोला जाता है।