अश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हर साल शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। विद्ववत परिषद के मीडिया प्रभारी राजकुमार तिवारी, श्रीकांत तिवारी ने बताया कि मान्यता अनुसार इस दिन माता महालक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ था। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला रचाई थी। हिंदू समाज के लिए शरद पूर्णिमा का पर्व किसी उत्सव से कम नहीं है। इस साल सूर्य और गुरू की पंचम-नवम दृष्टि के योग के साथ ही छह अन्य शुभ संयोग में यह पर्व से मनाया गया। दोपहर बाद देवी मंदिरों में विशेष पूजा-अनुष्ठान का आयोजन हुआ। जनकल्याण और रोग नाशक मंत्रों का भी जाप किया हुआ।
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत की वर्षा करती है। आयुर्वेद में शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से गिरने वाली ओस की बूंदों को अमृत तुल्य बताया गया है। इसी के चलते घरों में पूजा-अर्चना के बाद खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखने का विधान है। मान्यता है कि अमृत्त मिले खीर का सेवन करने से जीवन में सौभाग्य और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। अनेक मंदिरों में रात में रोग नाश और जनकल्याण के लिए विशेष प्रकार की औषधियों से हवन पूजन किया गया। पूजन के बाद प्रसादी वितरण किया गया। ग्राम मुजगहन ग्रामीण समेत श्रीराम हिन्दू संगठन युवा नवदुर्गोत्सव समिति रंग मंच द्वारा हरदिहा साहू समाज भवन में शरद पूर्णिमा महोत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया।