छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने चर्चित नान घोटाले की सीबीआई जांच की मांग वाली सभी जनहित याचिकाओं को किया खारिज

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सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने इस बात को नोट किया कि केवल दो जनहित याचिकाओं जो की हमर संगवारी एन जी ओ और सुदीप श्रीवास्तव अधिवक्ता के द्वारा लगाई गई थी उसमें ही अधिवक्ता याचिकाकर्ता अदालत में उपस्थित है। इसके अलावा अन्य याचिकाओं की तरफ से कोई उपस्थित नहीं हुआ। वहीं भारतीय जनता पार्टी के नेता धरमलाल कौशिक की ओर से अधिवक्ता गैरी मुखोपाध्याय उपस्थित थे।

बेंच ने कहा कि, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि मुकदमा अग्रिम चरण में है और 224 अभियोजन पक्ष के गवाहों में से 170 से अधिक अभियोजन पक्ष के गवाहों के साक्ष्य पहले ही दर्ज किए जा चुके हैं और मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ इस न्यायालय के समक्ष लंबित होने के कारण मुकदमा आगे नहीं बढ़ सका और अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मामले का निपटारा कर दिया है, हमें इस स्तर पर जाँच को सीबीआई को हस्तांतरित करने का कोई उचित आधार नहीं मिलता। इसके कारण सभी याचिकाएँ खारिज की जाती हैं। वहीं निचली अदालत शीघ्रता से मुकदमे का निपटारा करेगी।

राज्य सरकार की ओर से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दिल्ली से अधिवक्ता अतुल झा ने कोर्ट को बताया कि, 10 सालों में इस मामले में ट्रायल कोर्ट में 224 में से 170 गवाहों की गवाही हो चुकी है और मामला अब अपने अंतिम चरण की ओर जा रहा है। अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने जवाब में अपनी जनहित याचिका के बारे में बताते हुए कहा कि, जिन व्यक्तियों का चालान हुआ है या जिनका विचारण चल रहा है उस पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है बल्कि वे उसका समर्थन करते हैं।

श्रीवास्तव ने आगे कहा कि, एसीबी ने अपनी जांच में बहुत सारे लोगों को छोड़ दिया है और उन्हें सीधा-सीधा रोल होने के बावजूद पैसे लेने के बावजूद अभियुक्त नहीं बनाया है । यहां तक कि जहरीला नमक सप्लाई करने वाले अभियुक्त मुनीश कुमार शाह की अब तक गिरफ्तारी भी नहीं की गई है। एसीबी की जांच आधी अधूरी है। अतः उनकी याचिका इस जांच को सीबीआई को देकर इन सभी व्यक्तियों के ऊपर भी कार्यवाही करने के लिए है। इस स्तर पर खंडपीठ ने कहा कि यह मांग तो विचरण न्यायालय में धारा 319 का आवेदन लगाकर भी पूरी की जा सकती है और यह कहते हुए के मामला 10 साल से अधिक पुराना है और अब जांच एजेंसी बदलने की मांग उचित नहीं लगती। विचारण अब अंतिम चरण में है सभी जनहित याचिकाओं को निराकृत या खारिज कर दिया।