डाॅ. मेहता राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर के 37 वें स्थापना दिवस पर बाेल रहे थे। अश्व पालकों से चर्चा एवं सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए केंद्र के प्रभागाध्यक्ष डॉ एस सी मेहता ने कहा कि अब इस केंद्र ने और ऊंचाई हासिल की है एवं अब यह अश्व प्रजनन में भी मुख्य केंद्र बन चुका है। क्योंकि यहां से भारत की पहली स्वदेशी एसएनपी चिप एनबीएजीआर, करनाल के साथ बनी है, इस केंद्र ने घोड़ों की आठवीं नस्ल दी है एवं लगातार दो सालों तक राष्ट्रीय स्तर पर नस्ल संरक्षण पुरस्कार प्राप्त किया है। इसके साथ-साथ यह केंद्र मेटरनल लिनिएज एवं अश्वों के होल जीनोम एवं मशीन लर्निंग पर अभी कार्य कर रहा है एवं शीघ्र ही उसके परिणाम आप सभी के सामने होंगे। केंद्र की उपलब्धियों के साथ-साथ उन्होंने घोड़े को आम जनता के साथ जोड़ने के जो प्रयास संस्थान लगातार कर रहा है उसके बारे में बताया एवं स्वदेशी घोड़ो के खेलों को आगे बढ़ाने के लिए अश्व पालकों को प्रेरित किया । इसके साथ ही बीकानेर के सभी अश्व पालकों को संगठन बनाने का सुझाव भी दिया ।
समारोह के मुख्य अतिथि केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ जगदीश राणे ने घोड़ों की नस्लों के संरक्षण की बात की एवं घोड़ो में मौजूद रोग-प्रतिरोधक क्षमता वाले जीनोम अध्ययन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि घोड़ा न सिर्फ एक पशु है, बल्कि वह शक्ति, सौंदर्य और वफ़ादारी का जीता-जागता प्रतीक है। उन्होंने अश्व संग्रहालय का अवलोकन भी किया एवं कहा कि आम जनता को जोड़ने के यह बहुत ही सुन्दर प्रयास है। उत्कृष्ट अनुसंधान एवं विकास के लिए उन्होंने प्रभागाध्यक्ष एवं उनकी टीम को बधाई दी।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र, बीकानेर के निदेशक डॉ अनिल कुमार पूनिया ने कहा कि घोड़ा सुंदर, वफादार और आकर्षक है एवं घोड़ा मात्र एक सवारी नहीं है, यह साहस, धैर्य और अटूट विश्वास का प्रतीक है। उन्होंने घोड़ो की उपयोगिता के बारे में और आम बोल-चाल में काम आने वाली घोड़ो पर बने मुहावरे व लोकोक्तियों के उदाहरण दिए। उन्होंने इसकी गिरती हुई संख्या कि बात करते हुए केंद्र के प्रयासों को उत्तम कहा एवं यह भी कहा यह केंद्र देश के समकक्ष केन्द्रों में शिखर पर है ।