23 वर्षीय युवा कारीगर प्रीतम सरकार बताते हैं, हमारे परिवार में मूर्ति बनाने की परंपरा कई पीढ़ियों से चल रही है। इस बार छठ पूजा को लेकर पांच मूर्तियों का ऑर्डर मिला है, जिसमें दो रामानुजगंज, दो झारखंड और एक चंदननगर के लिए। उन्होंने कहा कि सभी मूर्तियों के डिज़ाइन यूनिक हैं। दो कपड़े से और तीन मिट्टी से बनाई जा रही हैं।
इस बार मूर्तियों की कीमत सात हजार से पंद्रह हजार रुपये तक रखी गई है। कारीगरों का कहना है कि हर मूर्ति में सिर्फ रंग और आकार नहीं, बल्कि श्रद्धा, परिश्रम और परंपरा की आत्मा झलकती है। मिट्टी के हर स्पर्श में सूर्य भक्ति का भाव बस जाता है।
उल्लेखनीय है कि, केरवाशिला के इन बंगाली कारीगरों की मेहनत यह साबित करती है कि, आस्था केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि वह हर उस हाथ में जीवित है जो भक्ति को रूप देने में लगा है। उनके हाथों से निकली हर मूर्ति सूर्य देव की भक्ति ही नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा, श्रम और कला के गहरे संगम की झलक देती है। यह वही भाव है जो मिट्टी से देवत्व को जन्म देता है और साधारण से असाधारण की सृष्टि करता है।
छठ महापर्व के अवसर पर इन कलाकारों की सृजनशीलता पूरे क्षेत्र में न केवल आस्था का प्रतीक बनती है, बल्कि यह भी संदेश देती है कि संस्कृति तभी जीवित रहती है जब उसके कारीगरों का सम्मान हो। केरवाशिला की मिट्टी में गढ़ी जा रही ये प्रतिमाएं इस बात का प्रमाण हैं कि जहां समर्पण और श्रम होता है, वहीं से भक्ति की सबसे उजली किरणें निकलती हैं।