टीम ने प्रसिद्ध टेराकोटा कलाकार अशोक चक्रधारी से मुलाकात की, उन्होंने बताया कि मिट्टी की हर आकृति धैर्य, अनुभव और सटीकता का परिणाम होती है, एक छोटी सी गलती पूरी मेहनत पर पानी फेर सकती है। टीम ने उनके बनाए प्रसिद्ध “मैजिक दीये” की कार्य-प्रणाली को भी समझा। इसके बाद टीम ने रॉट आयरन कलाकार तिजुराम बघेल से भेंट की। बघेल ने बताया कि यह कला उनके पूर्वजों की धरोहर है, जहां एक समय उनके परिवार के लोग पत्थरों को पिघलाकर लोहा निकालते थे और उसी से औजारों व पूजा की वस्तुएँ बनाते थे। उन्होंने बस्तर के अमुस तिहार (हरेली) पर्व का भी उल्लेख किया, जिसमें घर की चौखट पर लोहे की कील ठोकने की परंपरा आज भी जीवित है। इसे नकारात्मक शक्तियों से रक्षा का प्रतीक माना जाता है।