दीपावली -आभामय रात्रि का पर्व: गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

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देश के कई भागों में दिवाली को काली चौदस के रूप में भी मनाया जाता है। देवी काली की पूजा को समर्पित यह त्योहार रात्रि की भव्यता और महिमा की सुंदर स्मृति दिलाता है। यदि रात न होती, अंधकार न होता, तो हम कभी भी अपने ब्रह्मांड की विशालता को नहीं जान पाते। हम कभी नहीं जान पाते कि सृष्टि में अन्य ग्रह भी हैं। ऐसा प्रतीत हो सकता है कि हम दिन में अधिक देखते हैं, और रात में कम; लेकिन जो हम रात में देखते हैं, वह सम्पूर्ण ब्रह्मांड है, ब्रह्मांड का अनंत विस्तार है। जब हम तुच्छ वस्तुओं के लिए अपनी आँखें बंद कर लेते हैं, तो हम उन्हें किसी महान वस्तु के लिए खोल देते हैं। यदि आप ध्यान दें, तो आपकी आँखों की पुतलियां कृष्ण रंग की हैं, इन्हें काली भी कहा जाता है। अगर हमारी आँखों में काली पुतलियां न हों तो हम कुछ भी नहीं देख पाएंगे। काली ज्ञान का प्रतीक है. वह ज्ञान की माता है. वह कोई ऐसी देवी नहीं है जो अपनी जिह्वा बाहर निकालकर आपको डराने का प्रयत्न कर रही हो। वे सभी मात्र चित्रण हैं। वह एक ऐसी ऊर्जा है जिसका वर्णन हम अपनी बुद्धि से नहीं कर सकते या समझ नहीं सकते। इसे केवल अनुभव किया जा सकता है। काली भगवान शिव के ऊपर भी खड़ी हैं। इसका क्या अर्थ है? शिव का अर्थ है अनंत मौन । जब हम शिव के अद्वैत गहन मौन का अनुभव करते हैं, तो हम समझते हैं कि यह हमारा अपना स्वरूप है। वहां हम काली की ऊर्जा का अनुभव करते हैं, जहां हम स्वयं को उच्च ज्ञान के लिए खोलते हैं। उन्होंने कहा कि हम दिवाली पर धन की देवी, देवी लक्ष्मी का आह्वान करते हैं और उनका आशीर्वाद मांगते हैं। वह अपने साथ साहस व रोमांच की भावना लेकर आती हैं। आप जानते हैं, धन प्राप्त करने का विचार कई लोगों में रोमांच पैदा करता है। इसलिए धन की देवी का दूसरा संकेत रोमांच की भावना है। देवी लक्ष्मी का तीसरा लक्षण है सौन्दर्य और प्रकाश।वह एकांगी भक्ति पसंद करती हैं। इसे दर्शाती हुई एक सुंदर कहानी है. जब आदि शंकराचार्य केवल 8 वर्ष के थे, तब उन्होंने कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी, जो एक बहुत ही लयबद्ध, शक्तिशाली और अर्थपूर्ण छंद है।

कहानी यह है कि एक दिन आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने के लिए एक घर के बाहर खड़े थे। घर की महिला इतनी गरीब थी कि उसके पास चढ़ाने के लिए केवल एक करौंदा था। उसने उसे उनके कटोरे में रख दिया। ऐसा कहा जाता है कि उसकी भक्ति से प्रभावित होकर आदि शंकराचार्य ने लक्ष्मी देवी की स्तुति में कनकधारा स्तोत्र गाया और देवी ने घर में सुनहरे आंवलों की वर्षा कर दी।