एडीआर ने कहा है कि वोटर लिस्ट में शामिल करने के लिए जिन 11 वैध दस्तावेजों की सूची निर्वाचन आयोग ने दी है वे भी फर्जी और झूठे दस्तावेजों के जरिये हासिल किए जा सकते हैं। एडीआर ने कहा है कि स्थायी आवास प्रमाण पत्र, ओबीसी, एससी, एसटी प्रमाण पत्र औऱ पासपोर्ट तक के लिए आधार कार्ड की जरुरत होती है। ऐसे में निर्वाचन आयोग की ओर से आधार कार्ड को विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए शामिल नहीं करना बेतुका है। एडीआर ने कहा है कि निर्वाचन आयोग की ओर से विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान एन्यूमरेशन फॉर्म के साथ संलग्न दस्तावेजों की सत्यता प्रमाणित करने की कोई निश्चित प्रक्रिया नहीं बतायी गयी है। एडीआर ने कहा है कि इलेक्टोरल रजिट्रेशन आफिसर्स (ईआरओ) को दस्तावेजों को स्वीकार करने का इतना ज्यादा अधिकार दे दिया गया है कि इसका दुष्परिणाम बिहार की एक बड़ी आबादी को वोटर लिस्ट से बाहर करने के रुप में देखा जा सकता है। एडीआर ने कहा है कि एक ईआरओ को तीन लाख लोगों के एन्यूमरेशन फॉर्म को संभालने का जिम्मा दिया गया है। यहां तक कि एन्यूमरेशन फॉर्म वोटर की अनुपस्थिति में भी भरा जा रहा है।
इस मामले में निर्वाचन आयोग ने हलफमाना दायर कर कहा है कि मतदाता पहचान पत्र को वोटर लिस्ट में शामिल करने के लिए मान्य दस्तावेज के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। निर्वाचन आयोग ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल जवाब में कहा है कि आधार कार्ड और राशन कार्ड को भी वैध दस्तावेज नहीं माना जा सकता है। निर्वाचन आयोग ने कहा है कि बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 21(3) के तहत किया जा रहा है और मतदाता पहचान पत्र वर्तमान वोटर लिस्ट के मुताबिक बनाया गया है। आधार कार्ड को लेकर निर्वाचन आयोग ने कहा है कि ये नागरिकता का सबूत नहीं है। निर्वाचन आयोग ने कहा कि आधार कानून की धारा 9 में स्पष्ट कहा गया है कि ये नागरिकता का दस्तावेज नहीं है।
बता दें कि 10 जुलाई को उच्चतम न्यायालय ने बिहार में वोटर वेरिफिकेशन की प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। जस्टिस सुधांशु धुलिया की अध्यक्षता वाली वेकेशन बेंच ने कहा था कि विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया जारी रहेगी। कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से वेरिफिकेशन किए जाने वाले दस्तावेजों की सूची में आधार, वोटर कार्ड और राशन कार्ड शामिल करने का सुझाव दिया था।
इस मामले में राष्ट्रीय जनता दल, तृणमूल कांग्रेस के अलावा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने उच्चतम न्यायालय में याचिकाएं दायर की हैं। याचिका में निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में एसआईआर के लिए जारी आदेश को रद्द करने की मांग की गई है। एडीआर की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने याचिका दाखिल कर कहा है कि निर्वाचन आयोग का ये आदेश मनमाना है। याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग का ये आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 32 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग का ये आदेश मतदाता पंजीकरण नियम के नियम 21ए का भी उल्लंघन करता है।
याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग का आदेश न सिर्फ मनमाना है बल्कि ये उचित प्रक्रिया के बगैर जारी किया गया है। इससे लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। निर्वाचन आयोग के इस कदम से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव बाधित होगा। मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए अनुचित रुप से काफी कम समय-सीमा रखी गयी है क्योंकि राज्य में ऐसे लाखों नागरिक हैं जिनके नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे और जिनके पास विशेष गहन पुनरीक्षण के आदेश के तहत मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं। याचिका में कहा गया है कि कुछ लोग इन दस्तावेजों को प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं, लेकिन विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए काफी कम समय-सीमा होने के चलते उन्हें समय पर ऐसा करने से रोक सकती है।
याचिका में कहा गया है कि बिहार एक ऐसा राज्य है जहां गरीबी और पलायन उच्च स्तर पर है और यहां एक बड़ी आबादी के पास जन्म प्रमाण पत्र या अपने माता-पिता के रिकॉर्ड जैसे जरुरी दस्तावेज नहीं हैं। बिहार में इस तरह का अंतिम पुनरीक्षण 2003 में किया गया था।