भारत का विनिर्माण क्षेत्र में कमजोर होना, ये तर्क कांग्रेस का व्यर्थ है
डॉ. मयंक चतुर्वेदी
कांग्रेस ने इन दिनों अपने युवराज राहुल गांधी के जरिए लगातार केंद्र सरकार की आलोचना के लिए जो रास्ता चुना है, वह सही नजर नहीं आ रहा। क्योंकि उनके द्वारा उठाया गया ये मुद्दा सत्य से बहुत दूर दिखता है। उनका तर्क है कि मोबाइल फोन एवं विनिर्माण क्षेत्र के सभी उत्पाद भारत में असेंबल किए जा रहे हैं और उनके पुर्जे विदेश से आयात किए जा रहे। वे केंद्र सरकार को यह कहकर घेरते दिखे कि मेक इन इंडिया ने फैक्टरी बूम का वादा किया था। तो फिर विनिर्माण रिकॉर्ड निचले स्तर पर क्यों है, युवा बेरोजगारी रिकॉर्ड ऊंचाई पर क्यों है और चीन से आयात दोगुने से अधिक क्यों हो गया है? राहुल यह भी समझाते हैं कि “हमें दूसरों के लिए बाजार बनना बंद करना होगा। अगर हम यहां निर्माण नहीं करते हैं, तो हम उन लोगों से खरीदते रहेंगे जो निर्माण करते हैं।” किंतु क्या राहुल यहां जो बता रहे हैं, वह उतना ही सच है, जैसा कि कहा जा रहा है? भारत क्या विनिर्माण क्षेत्र में लगातार कमजोर हुआ है? या फिर जैसा कांग्रेस कह रही है कि हम दूसरों के लिए बाजार बन गए हैं, वह पूरा सच है?
वस्तुत: जैसा कि अर्थ, वाणिज्य और उद्योग जगत के जानकार जानते हैं, बाजार में हर कुछ एक दूसरे पर निर्भर है। यह हो सकता है कि कभी कोई आगे तो कभी कोई कुछ या अधिक पीछे दिखाई दे, लेकिन हमेशा परिणाम सकारात्मक या नकारात्मक ही होंगे, यह बाजार में कभी स्थायी रूप से होता नहीं है। जहां तक भारत के विनिर्माण क्षेत्र में कार्य करने एवं विकास का प्रश्न है तो आंकड़े जो कहते हैं, वह ऐसे वक्त में जब दुनिया के तमाम देशों के बीच जहां परस्पर युद्ध का साया मंडरा रहा है तो कहीं सीधे युद्ध जैसी स्थितियां हैं, फिर भी बहुत आशावादी और उत्साहवर्धक कहे जा सकते हैं।
ये कुछ आंकड़े हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जब केंद्र में सरकार बनी तब देश की अर्थव्यवस्था 11वें नंबर पर थी। ग्यारह साल में अर्थव्यवस्था को ग्यारहवें नंबर से चौथे नंबर पर आ गई। आज भारत दुनिया की टॉप पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो चुका है। यह लगातार चौथा वर्ष है जब भारत सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था रहा है। प्रति व्यक्ति आय में 67 प्रतिशत, विदेशी मुद्रा भंडार में 135 प्रतिशत, निर्यात में 825 अरब अमेरिकी डॉलर का रिकॉर्ड स्तर, एफडीआई में 106 प्रतिशत, टैक्सपेयर्स की संख्या में 127 प्रतिशत और डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में 238 प्रतिशत की वृद्धि भारत के संदर्भ में आज दिखाई देती है। पिछले 11 वर्षों में 27 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से बाहर आए हैं। विचार करें; क्या यह सरकार के बिना सही प्रयास वगैर संभव होता?
यह तो सभी जानते हैं कि सरकारी नौकरियां कुल जनसंख्या में अधिकतम तीन प्रतिशत लोगों को ही दी जा सकती है, ऐसे में शेष 97 प्रतिशत के लिए रोजगार, श्रम एवं कृषि ही वह उपाय है, जहां से वे अपने लिए आय प्राप्त कर सकते हैं। स्वभाविक तौर पर इसमें सबसे बड़ा हिस्सा वर्तमान में उद्योग-धंधे से होनेवाली आय का है। यदि देश में विनिर्माण क्षेत्र कमजोर होता तब फिर 27 करोड़ लोगों का गरीबी की रेखा से बाहर निकलना कभी संभव ही नहीं होता! यानी भारत के विनिर्माण क्षेत्र में अच्छा कार्य हो रहा है और रोजगार के तमाम अवसर सुगम है, इसलिए देश में गरीबी कम हो रही है, लखपति के बाद अब करोड़पति और अरबपतियों की संख्या में इजाफा हो रहा है।
इसी जून माह के प्रारंभ में भारत के मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई के संबंध में रिपोर्ट देखने को मिली। जो कहती है कि मई में भारत का मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई मई में 57.6 रहा। मजबूत मांग और रिकॉर्ड हायरिंग दर्ज की जा रही है। हालांकि मई में पीएमआई अप्रैल के 58.2 से मामूली रूप से कम रहा है, फिर भी ध्यान देने योग्य है कि पीएमआई 50 से ऊपर होता है तो यह वृद्धि को दिखाता है। यानी भारत वर्तमान में वृद्धि करते हुए साफ दिखाई देता है। स्वभाविक है कि यह मजबूत वृद्धि घरेलू और विदेशी मांग के साथ-साथ सफल मार्केटिंग प्रयासों के कारण हुई है, जिसने निर्यात ऑर्डर को पिछले तीन वर्षों के सबसे उच्च स्तर पर पहुंचा दिया। एचएसबीसी की ओर से किए गए पीएमआई सर्वेक्षण में देश भर की फर्मों ने एशिया, यूरोप, पश्चिम एशिया और अमेरिका के प्रमुख बाजारों से बढ़ती रुचि के बारे में भी बताया है।
वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक बाजारों में आर्थिक अनिश्चितताओं के बावजूद, भारत का माल और सेवा निर्यात वित्त वर्ष 2025 में रिकॉर्ड 820 बिलियन डॉलर को पार कर गया है, जो पिछले वित्त वर्ष के 778 बिलियन डॉलर के इसी आंकड़े से करीब 6 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। देश की जीडीपी पिछली तिमाही में एक साल पहले की तुलना में 7.4% बढ़ी, जो 2024 की शुरुआत के बाद से इसकी सबसे तेज़ गति है। एसएंडपी ग्लोबल द्वारा संकलित एचएसबीसी इंडिया मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) तो यही दर्शा रही है कि विनिर्माण नौकरियों में सबसे तेज वृद्धि देखी गई, जिसमें कंपनियों ने अस्थायी श्रमिकों की तुलना में स्थायी कर्मचारियों को प्राथमिकता दी है।
जहां तक विशेष रूप से मोबाइल फोन उत्पादक का विषय है तो इसमें आज भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, पिछले 11 सालों के दौरान 2014 में दो विनिर्माण इकाइयां से बढ़कर आज इनकी संख्या 300 से अधिक हो गई है। मोबाइल फोन का निर्यात 2014-15 में 1,566 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 1.2 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जो 77 गुना वृद्धि है। यह भी एक तथ्य है कि भारत में बिकने वाले 99.2 प्रतिशत मोबाइल फोन अब भारत में निर्मित होते हैं, जबकि 2014-15 में यह आंकड़ा मात्र 26 प्रतिशत था। पीएलआई योजना से 10,905 करोड़ रुपये का संचयी निवेश और 7.15 लाख करोड़ रुपये का उत्पादन हुआ है।
अकेले इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए पीएलआई योजना के तहत 1,39,670 प्रत्यक्ष नौकरियां सृजित की गई हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन मूल्य वित्त वर्ष 2014 में 18,900 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 4.22 लाख करोड़ रुपये हो गया। वित्त वर्ष 2024-25 में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 38 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया, जो साल-दर-साल 32 प्रतिशत की वृद्धि है। 2023-24 में 1.8 लाख नई कंपनियां पंजीकृत की गईं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 16 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाती हैं, जो निरंतर औद्योगिक और उद्यमशीलता विकास का संकेत है।
आप सोचें ये जो नई कंपनियों की संख्या सामने आई है, यह भारत में क्या कर रही हैं, रोजगार का सृजन, माल का निर्माण और उसकी देशी एवं विदेशी बाजार में उसकी खपत। सरकार ने 1.52 लाख करोड़ रुपये की सेमीकंडक्टर परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिससे 2026 तक इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इसलिए कांग्रेस या राहुल गांधी जो आज भारत के विनिर्माण क्षेत्र को कमजोर होना बता रहे हैं, उनका यह कहना वास्तव में साक्ष्यों और आंकड़ों के आधार पर सही नहीं है। यह तो देश की जनता को गुमराह करने जैसा है, ताकि वर्तमान सत्ता के प्रति आमजन का विश्वास कमतर किया जा सके।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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