हिसार : ग्वार की खड़ी फसल में खरपतवार नाशक दवा के स्प्रे से दोहरा नुकसान: डाॅ. बीडी यादव

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हिसार : ग्वार की खड़ी फसल में खरपतवार नाशक दवा के स्प्रे से दोहरा नुकसान: डाॅ. बीडी यादव

अनावश्यक खरपतवारनाशक दवा छिड़काव से प्रभावित होती है आगामी फसलहिसार, 27 जून (हि.स.)। जिले के गांव बांडाहेड़ी में कृषक शिविर लगाकर किसानों को ग्वार की उन्नत किस्मों, बीजोपचार व ग्वार की खड़ी फसल में अनावश्यक खरपतवारनाशक दवाई का प्रयोग न करने व इसके नुकसान की जानकारी दी गई। शिविर में कृषि विभाग से सेवानिवृत उपमण्डल कृषि अधिकारी डाॅ. बृजलाल बेनीवाल मुख्य अतिथि थे जबकि अध्यक्षता कृषि विभाग के कृषि पर्यवेक्षक सतबीर सिंह ने की। कृषि विशेषज्ञों ने शुक्रवार काे शिविर में कहा कि ग्वार बारानी क्षेत्रों की महत्त्वपूर्ण फसल है। खरीफ मौसम की यह फसल न केवल कम लागत में अधिक मुनाफा देती है, बल्कि इससे जमीन की उर्वरक शक्ति भी बढ़ती है। इस क्षेत्र में काफी बिजाई हो चुकी है अगर किसी कारण ग्वार की बिजाई बची हुई है उसके लिए ग्वार किस्म एच.जी.365 व एच.जी. 563 की बिजाई बीज उपचार करके इस महीने के आखिर तक पूरी कर लेनी चाहिए। उन्होंने बताया कि ग्वार फसल की जो समय पर किसानों ने बिजाई की करीबन 25-30 दिन की हो गई है उसमें किसान खरपतवार की रोकथाम के लिए ग्वार की खड़ी फसल में काफी किसान चैड़ी पत्ती वाली खरपतवारनाशक दवा का प्रयोग करते हैं जो फसल पर बुरा असर डालती है। डाॅ. यादव ने किसानों को आगाह किया कि ग्वार की खड़ी फसल में चैड़ें पत्ते वाली खरपतवार जैसे साठी व कौहंदरा के नियत्रंण के लिए किसी भी अनावश्यक खरपतवार नाशक दवा का प्रयोग न करें। इस तरह की दवाई के प्रयोग से किसानों को दोहरा नुकसान होता है। दवा के प्रयोग से खरपतवार तो बेशक खत्म हो जायेंगे, लेकिन दवा का दुष्प्रभाव ग्वार की फसल के लिए बेहद नुकसानदायक है। ऐसा करने से ग्वार फसल के पत्ते पीले पड़ने शुरू हो जाते है तथा इसके साथ ग्वार की बढ़ोतरी 12 से 15 दिन तक रूक जाती है। इसके बाद इन दवाओं का असर आगामी फसल सरसों के जमाव पर 25 से 40 प्रतिशत तक पड़ता है तथा बाद में सरसों फसल की बढ़वार व पैदावार को काफी प्रभावित कर देती है। शिविर में किसानों को सलाह दी कि खरपतवार से निजात पाने के लिए एक निराई-गुड़ाई बिजाई के 25 से 30 दिन पर अवश्य करें। अगर इसके बाद जरूरत हो तो एक गुड़ाई इसके 15-20 दिन के बाद करें। मुख्य अतिथि डाॅ. बृजलाल ने कहा कि किसी भी दवा का प्रयोग करने से पहले कृषि वैज्ञानिक व कृषि अधिकारी से संपर्क अवश्य करें। उन्होंने मूंग की खेती के लिए एमएच 1142 किस्म बिजाई पर विशेष जोर दिया। इस शिविर में 130 किसानों ने भाग लिया तथा हर किसान को बीजोपचार की दो-दो एकड़ की दवाई दी। इस प्रोग्राम को आयोजित करने में गांव के कृषि पर्यवेक्षक डाॅ. सतबीर सिंह दात्तरवाल का योगदान रहा। इसके अलावा रामकुमार, विक्रम, रामकिशन, सतबीर, राजकुमार नेहरा, निहालसिंह, अमर सिंह, भागीरथ, जोगिन्द्र कुमार आदि मौजूद थे।