उत्तर प्रदेश में शिक्षा जगत से जुड़े एक गंभीर फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है, जिसमें नेता, सरकारी अधिकारी और कॉलेज प्रबंधक शामिल हैं। यह सब कुछ जिला विद्यालय निरीक्षक (DIOS) की मिलीभगत से हुआ है। जानकारों के अनुसार, वर्ष 2000 से अनुदान प्राप्त स्कूलों और इंटर कॉलेजों में अल्पकालिक नियुक्तियों पर रोक लगी हुई थी। बावजूद इसके, बलिया और मऊ जैसे जिलों में 200 से अधिक फर्जी भर्तियां की गई हैं। इस फर्जीवाड़े की जांच अब विशेष जांच दल (SIT) द्वारा की जाएगी। दैनिक भास्कर की टीम ने इस मामले की विस्तृत छानबीन की है और उनके पास ऐसे कई सबूत हैं जो दर्शाते हैं कि कैसे प्रभावशाली व्यक्तियों के बच्चे नकली तरीके से शिक्षण पदों पर नियुक्ति पाए।
जाँच में यह स्पष्ट हुआ कि कई प्रभावशाली लोगों के परिवार के सदस्य शिक्षा विभाग में नियुक्ति पा गए। जैसे बलिया के उत्कर्ष सिंह, जिनके पिता भाजपा एमएलसी रविशंकर सिंह हैं। उन्हें 2018 में रेवती इंटर कॉलेज में नियुक्त किया गया। इसी प्रकार बलिया भाजपा के नेता नागेंद्र पांडेय के बेटे रुद्र प्रकाश पांडेय को भी सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त किया गया। इस तरह के और भी कई उदाहरण मौजूद हैं, जिनमें शिक्षा विभाग के अधिकारियों के करीबी रिश्तेदारों को अनधिकृत रूप से नियुक्त किया गया है।
विस्तृत जांच में यह सामने आया कि फर्जी भर्तियों के लिए कई नियमों का उल्लंघन किया गया। सहायक अध्यापकों की नियुक्तियों पर लगी रोक के बावजूद, कॉलेज प्रबंधन ने 26 अल्पकालिक शिक्षकों की नियुक्ति की। इनकी सैलरी का भुगतान भी DIOS की अनुमति से किया गया है, जो कि पूरी तरह से अवैध था। इसके अलावा, संस्कृत विद्यालयों में भी शिक्षकों की नियुक्तियाँ की गईं, जबकि DIOS को इस कार्य के लिए अनुमति नहीं थी। अनेक भर्तियों में ऐतिहासिक दस्तावेजों में हेरफेर कर पुरानी तारीखें लगाई गईं हैं।
यह भ्रष्टाचार केवल बलिया और मऊ तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में फैला हुआ है। आगरा, आजमगढ़ और जौनपुर जैसे जिलों में भी इसी प्रकार के मामलों की खबरें आ रही हैं। SIT जांच पहले से ही आगरा में 41 फर्जी नियुक्तियों की पड़ताल कर रही है। इस भ्रष्टाचार का खुलासा तब हुआ जब बलिया और मऊ के DIOS एक-दूसरे के जिलों में स्थानांतरित हुए। इसके बाद ही फर्जी भर्तियों का पर्दाफाश हुआ और सैलरी रोकने का फैसला लिया गया।
इन सभी घटनाओं से साफ है कि शिक्षा विभाग में बड़ा भ्रष्टाचार व्याप्त है। यह जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है। गंभीरता से इन भर्तियों की जांच और संबंधित व्यक्तियों पर उचित कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि शिक्षा के इस अहम सेक्टर में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।