पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने विदेशी नागरिकों को सख्त चेतावनी देते हुए कहा है कि उन्हें अपने देश की अदालती प्रक्रिया से बचने के लिए भारतीय अदालतों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। यह टिप्पणी अदालत ने एक चार वर्षीय बच्चे की कस्टडी के मामले की सुनवाई के दौरान की। यह याचिका एक कनाडाई महिला द्वारा दायर की गई थी, जिसने भारत से अपने पुत्र को वापस लाने की माँग की थी। न्यायमूर्ति मंजरी नेहरू कौल ने इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए यह महत्वपूर्ण बयान दिया।
वास्तव में, इस बच्चे को पिछले साल उसके कनाडाई नागरिक पिता ने भारत ले आया था। बच्चे के माता-पिता दोनों विदेशी नागरिक हैं और अब वे अलग हो चुके हैं। कनाडा की अदालत ने पिता को केवल दो से तीन हफ्तों के लिए बच्चे को भारत लाने की अनुमति दी थी, लेकिन पिता ने बच्चे को वापस नहीं लाया। इसके बजाय, उसने भारत में बच्चे की स्थायी कस्टडी के लिए मामला दायर कर दिया। अदालत ने इसे ‘फोरम शॉपिंग’ का मामला बताया, जिसमें एक व्यक्ति सुविधाजनक न्यायालय तलाशता है ताकि अपने पक्ष में निर्णय प्राप्त कर सके। न्यायालय ने कहा कि यह न केवल खराब इरादों को प्रकट करता है, बल्कि यह न्यायिक अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप का प्रयास भी है, जिसे भारतीय अदालतें स्वीकार नहीं करेंगी।
याचिका में बच्चा की मां ने स्पष्ट किया कि जब पिता ने बच्चे को वापस नहीं लौटाया, तब नवंबर 2024 में कनाडा की ओंटारियो फैमिली कोर्ट ने कस्टडी उसे सौंप दी थी। इस पर अदालत ने कहा कि बच्चे को भारत में रखना केवल विदेशी अदालत के आदेश का उल्लंघन नहीं है, बल्कि यह बच्चे के हित के भी खिलाफ है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक पिता अच्छा और योग्य हो, तब भी बच्चे के लिए मां की देखभाल का कोई विकल्प नहीं हो सकता। छोटे बच्चे के स्नेह और देखभाल के लिए मां का होना अत्यंत आवश्यक है, विशेष रूप से जब बच्चा छोटा और कमजोर हो।
इसके अतिरिक्त, उच्च न्यायालय ने बताया कि न्यायालयों की गाइडलाइंस के अनुसार ऐसे मामलों में बच्चों के सर्वोत्तम हित को अधिक महत्व प्राप्त है। अदालत ने कहा कि बच्चे को भारत में रखने का निर्णय अनधिकृत है और यह न केवल याचिकाकर्ता के अधिकारों का उल्लंघन करता है बल्कि यह कानून, अंतरराष्ट्रीय नियमों और बच्चे की भलाई के खिलाफ भी है। कोर्ट ने पिता के इरादे पर भी सवाल उठाए, यह कहते हुए कि उसने विदेशी अदालत के आदेशों की अनदेखी की और भारत में कानूनी अधिकार पाने का प्रयास किया, जो स्वीकार्य नहीं है।
जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने इस मामले में तेजी से निर्णय लेते हुए कहा कि देशों के आपसी सम्मान और बच्चे के सर्वोत्तम हित के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है, लेकिन अंततः निर्णय हमेशा बच्चे की भलाई के संदर्भ में होना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि बच्चा कनाडा का नागरिक है और उसकी भलाई को उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। अंत में, उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि बच्चे को उसकी मां के सुपुर्द किया जाए और उसे कनाडा भेजा जाए। यह निर्णय न केवल बच्चे के हित में है, बल्कि न्यायपालिका की विवेचना में भी एक सकारात्मक संदेश है।