राजस्थान में भजनलाल सरकार अपने कार्यकाल के एक साल से अधिक समय में किसी भी मंत्री द्वारा संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक न करने के लिए आलोचना का सामना कर रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश हैं कि प्रत्येक मंत्री को हर वर्ष अपनी संपत्ति का विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य है। इस प्रक्रिया के अनुसार, मंत्रियों को यह जानकारी सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) की वेबसाइट पर अपलोड करना आवश्यक है। लेकिन जब भास्कर ने जीएडी की वेबसाइट पर जांच की, तो वहां केवल पूर्व मंत्रियों की संपत्ति का एक हाइपर लिंक मौजूद था, जो खुल नहीं रहा था। वर्तमान में सरकार में शामिल मंत्रियों की संपत्ति का कोई विवरण वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है। पिछले दो दशक में सिर्फ एक बार, गहलोत सरकार के कार्यकाल (2009-2013) में ही मंत्रियों की संपत्ति का विवरण सार्वजनिक किया गया था।
राजस्थान में वर्तमान में 24 मंत्री हैं, जिनमें से सभी ने अपनी संपत्तियों और लेनदेन का ब्योरा अंतिम बार नवंबर 2023 में विधानसभा चुनाव में दिए गए एफिडेविट में प्रस्तुत किया था। मंत्रियों का कहना है कि वे विवरण मुख्यमंत्री को दे चुके हैं, और अब यह तय करना मुख्यमंत्री का कार्य है कि इसे सार्वजनिक किया जाए या नहीं। हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार भजनलाल सरकार के सभी मंत्री करोड़पति हैं, जिनकी औसत संपत्ति 7.08 करोड़ रुपए है। यह आंकड़ा चुनावी एफिडेविट के आधार पर तैयार किया गया है।
केंद्र सरकार ने 2010 में संपत्तियों के सार्वजनिक ब्योरे के लिए नियम बनाए थे। इसके तहत सभी मंत्री प्रतिवर्ष अपनी चल और अचल संपत्ति की जानकारी संबंधित अधिकारियों को प्रस्तुत करते हैं, लेकिन राजस्थान में इस नियम की अनदेखी की गई है। राज्य में पिछले दो सरकारों के दौरान संपत्तियों का कोई विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया। 2013 में सत्ता परिवर्तन के बाद, जब बीजेपी की सरकार बनी, तब से संपत्तियों का ब्योरा सार्वजनिक करने की प्रक्रिया को रोक दिया गया था। 2018 में जब कांग्रेस की सरकार फिर से आई, तब भी इस पर अमल नहीं किया गया।
सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव जोगाराम ने इस मुद्दे को लेकर कहा कि यदि कोई नियम है तो जानकारी प्राप्त की जाएगी और उसके अनुसार कार्य किया जाएगा। इस स्थिति में कई सवाल उठ रहे हैं, खासकर जब कि अन्य राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार में मंत्री अपने संपत्तियों का ब्योरा हर साल सार्वजनिक कर रहे हैं। राजस्थान के कर्मचारियों के लिए संपत्तियों का विवरण प्रस्तुत करने के नियम सख्ती से लागू हैं, जहां बतौर पेनल्टी पदोन्नति रोकने का प्रावधान भी है।
केंद्र स्तर पर भी प्रधानमंत्री मोदी ने हर साल 31 अगस्त तक परिसंपत्तियों का ब्योरा देने की अनिवार्यता लागू की है, जिसका पालन कई राज्यों में किया जा रहा है। जबकि राजस्थान में मंत्री अपनी संपत्ति का विवरण सार्वजनिक करने में कन्नी काट रहे हैं। इस प्रकार, भजनलाल सरकार की इस प्रवृत्ति से स्पष्ट होता है कि यहां पारदर्शिता की कमी है, जो लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ जाती है। सम्पत्ति का ब्योरा सार्वजनिक करने से ही सरकार की पारदर्शिता में सुधार हो सकता है और जनसमर्थन को बढ़ाने में मदद मिल सकती है।