मुंबई स्टाइल मसाला पाव के दीवाने, जयपुर के असली ‘पंडित’ खुद उगाते हैं सब्जियां!

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जयपुर में पाव भाजी का नाम सुनते ही दिमाग में सबसे पहले ‘पंडित पावभाजी’ आता है। चाहे आप बिरला मंदिर हों या जवाहर सर्किल, यहाँ पाव भाजी के ठेले पर ‘पंडित’ का नाम जरूर देखने को मिलेगा। यह नाम इतना लोकप्रिय हो चुका है कि अब आम आदमी से लेकर बड़े-बड़े सितारे तक यहाँ के खाने के दीवाने हैं। इस पवित्र जायके की शुरुआत 45 साल पहले दौसा के पंडित हरि नारायण शर्मा ने की थी, जब उन्होंने मुंबई के जायके को जयपुर में पेश करने का साहसik लिया।

पंडित पावभाजी का सफर तब शुरू हुआ जब राजमंदिर सिनेमा के आसपास पहले कम ग्राहक आते थे। लेकिन धीरे-धीरे जैसे-जैसे लोगों को यहाँ का स्वाद भा गया, यह दुकान बढ़ती चली गई। पंडित जी ने अपने पाव भाजी में देसी मक्खन का उपयोग कर इसे एक खास स्वाद दिया। केवल पाव भाजी ही नहीं, यहाँ के मुंबई स्टाइल मसाला पाव ने भी लोगों के बीच धूम मचाई है। पंडित जी ने अपने खेतों में सब्जियाँ उगाकर भाजी का स्वाद बरकरार रखा है, जिससे यहाँ की पाव भाजी की खासियत में कोई कमी नहीं आती।

पाव भाजी का इतिहास भी रोमांचक है। इसकी शुरुआत 1850 में औद्योगिक मजदूरों के नाश्ते के रूप में हुई थी, लेकिन अब यह पूरे देश में सभी को पसंद आने वाला व्यंजन बन गया है। जयपुर में पंडित पावभाजी का ठेला स्थानीय संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। रिंकू पंडित, पंडित जी के बेटे, ने बताया कि उनके पिता ने इस व्यापार को चलाने के लिए कड़ी मेहनत की। उन्होंने अपनी जूस की दुकान पर काम करते हुए पाव भाजी तैयार करने का कौशल सीखा और 1980 में राजमंदिर के पास अपने ठेले की शुरुआत की।

पंडित पावभाजी के नाम का विशेष महत्व है। रिंकू बताते हैं कि उनके परिवार का संबंध दौसा के ब्राह्मण परिवार से है, इसलिए उनके पिता ने अपने पाव भाजी को ‘पंडित’ नाम दिया। धीरे-धीरे यहाँ की पाव भाजी प्रसिद्ध होने लगी और अन्य दुकानों पर भी इसी नाम के साथ पाव भाजी बनना शुरू हुआ। हालांकि, गलत नामों की वजह से कुछ दुकानें उनके बिजनेस को प्रभावित करने लगीं, जिससे उनके पिता ने अपने ब्रांड नाम की सुरक्षा का फैसला किया। अब उनके केवल दो आउटलेट हैं, जिसमें एक राजमंदिर के पास और दूसरा जयपुर-आगरा नेशनल हाईवे पर है।

पंडित पाव भाजी की खासियत यह है कि यहाँ बाजार के मसालों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। सभी मसाले घर पर ही तैयार किए जाते हैं और सब्जियाँ अपनी फसल से ली जाती हैं। पाव भाजी बनाने का तरीका भी कुछ खास है – यहाँ इसे कोयले की सिगड़ी पर बनाया जाता है, जो इसके स्वाद को और भी बढ़ाता है। ग्राहकों की पसंद को देखते हुए, कई लोग आज भी यहाँ पाव भाजी खाने आते हैं, चाहे वो पुराने दोस्त हों या परिवार। इस प्रकार, पंडित पाव भाजी ने न केवल एक ब्रांड बनाया है, बल्कि यह जयपुर की सांस्कृतिक पहचान में एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।