दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर मिले कैश के मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज महत्वपूर्ण सुनवाई होने वाली है। इस मामले में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें दिल्ली पुलिस से एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई है। यह याचिका एडवोकेट मैथ्यूज जे नेदुम्परा द्वारा प्रस्तुत की गई है। सुप्रीम कोर्ट की कॉज लिस्ट के अनुसार, जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। इस याचिका में 1991 के एक सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया था कि किसी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ आपराधिक मामले की कार्रवाई के लिए CJI की अनुमति जरूरी है।
यह मामला तब चर्चा में आया जब 14 मार्च को जस्टिस वर्मा के घर में आग लग गई थी। फायर सर्विस की टीम आग बुझाने गई तो उन्होंने स्टोर रूम में बोरियों में भरे हुए 500-500 रुपए के आध जले नोट पाए। इसके बाद से मामला मीडिया की सुर्खियों में बना हुआ है। फिलहाल, दिल्ली पुलिस ने इस संदर्भ में 8 कर्मियों के मोबाइल फोन जब्त कर फोरेंसिक लैब को भेज दिए हैं। पुलिस अधिकारियों का प्रयास है कि यह पता लगाया जाए कि आग लगने के समय मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने क्या कोई वीडियो रिकॉर्ड किया था और यदि ऐसा हुआ तो क्या उसमें कोई छेड़छाड़ की गई थी।
दिल्ली फायर सर्विस के प्रमुख अतुल गर्ग ने जांच पैनल के समक्ष गवाही दी, लेकिन उन्होंने अग्निशामक कर्मियों द्वारा नकदी की बरामदगी के दावों से इनकार किया। यह पूछताछ दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के तबादले के संदर्भ में भी हो रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकीलों ने जज वर्मा के तबादले के खिलाफ प्रदर्शन किया है और उन्होंने कहा है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम कोई ठोस निर्णय नहीं लेता, तब तक उनकी हड़ताल जारी रहेगी।
जज वर्मा की पेशी जांच समिति के सामने इस सप्ताह होने की संभावना है। न्यायाधीश वर्मा ने अपनी पेशी से पहले सीनियर वकीलों के साथ बैठक की है, जिसमें उन्होंने अपने अंतिम उत्तर को तैयार करने में मदद प्राप्त की। इस मामले में जज वर्मा की स्थिति की स्पष्टता और आगे की कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। मामला जटिल और संवेदनशील है, जिससे न केवल न्यायपालिका की छवि पर असर पड़ सकता है, बल्कि कानूनी प्रक्रिया में भी कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
इस स्थिति पर सभी नजरें टिकी हुई हैं, जहां एक ओर न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा की जानी है, वहीं दूसरी ओर पारदर्शिता और जवाबदेही की भी आवश्यकता महसूस की जा रही है। कार्रवाई के अगले चरण और न्याय विभाग की तैयारियों का इंतजार रहेगा, जो इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।