महानगर राजनीति में भाजपा का वैश्य कार्ड: नगर विधायक का प्रभाव, दशकभर से पार्टी की जिम्मेदारी!

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सहारनपुर की राजनीति में भाजपा ने एक बार फिर जातीय संतुलन साधने की योजना को क्रियान्वित किया है। लगभग दो महीने के इंतजार के बाद भाजपा ने शीतल बिश्नोई को महानगर अध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया है। शीतल बिश्नोई वैश्य समुदाय से हैं और पिछले तीन दशकों से भाजपा में सक्रिय हैं। उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और स्थानीय राजनीति में भी उनकी धाक रही है। उनकी नियुक्ति को भाजपा की जातीय रणनीति का एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जिसमें पार्टी ने ब्राह्मण, पंजाबी, सैनी और अब वैश्य समुदाय को साधने का प्रयास किया है।

सहारनपुर में जातीय समीकरण हमेशा से राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहे हैं। भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में ब्राह्मण जनसंख्या के हित में राघव लखनपाल शर्मा को टिकट देकर एक सामान्य रणनीति का पालन किया था, जबकि पंजाबी समाज के राजीव गुंबर को नगर सीट से विधायक बनाया गया था। महापौर पद की आरक्षित श्रेणी के कारण भाजपा ने डॉ.अजय सिंह को नियुक्त कर पिछड़ी जाति के हितों को भी महत्व दिया। अब वैश्य समाज को अध्यक्ष पद देकर भाजपा ने अपने जातीय संतुलन को और मजबूती प्रदान की है।

शीतल बिश्नोई की नियुक्ति न केवल संगठनात्मक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारी का एक हिस्सा भी है। भाजपा ने यह संदेश दिया है कि पार्टी में कार्यकर्ताओं को उनकी पृष्ठभूमि के बावजूद सम्मान मिलता है। शीतल बिश्नोई ने 1990-91 से भाजपा की राजनीति में कदम रखा और विभिन्न भूमिकाओं में रहते हुए संगठन को मजबूत बनाया। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि भाजपा का यह जातीय संतुलन आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उसकी मजबूती या चुनौती साबित हो सकता है।

भाजपा की इस जातीय संतुलन की योजना को 2024 के चुनावों की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सहारनपुर में वैश्य, ब्राह्मण, पंजाबी, सैनी, गुर्जर और मुस्लिम समाज की महत्वपूर्ण भूमिका है। पार्टी को विपक्षी दलों की चुनौती का सामना करना पड़ेगा, जो भाजपा की नियुक्तियों में जातीय समीकरण को प्राथमिकता देने का आरोप लगाएंगे। भाजपा के विधायक राजीव गुंबर ने महानगराध्यक्ष पद के लिए अपनी कोशिश की, जबकि पूर्व सांसद राघव लखनपाल शर्मा अपने परिवार के सदस्यों को इस पद दिलाने की कोशिश कर रहे थे। आगामी समय में यह देखना होगा कि जिलाध्यक्ष पद की बल्ले-बल्ले किसके हक में होती है।

भाजपा ने सहारनपुर में जातीय संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह रणनीति 2027 में सफल होगी। भाजपा को अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा, विशेषकर मुस्लिम और दलित मतदाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। भाजपा को उम्मीद है कि विभिन्न जातियों को प्रतिनिधित्व देने से उनका आधार मजबूत होगा। शीतल बिश्नोई, जो पार्टी में लगभग 35 वर्षों से सक्रिय हैं, अब अपने अनुभव और मेहनत के साथ इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं।