डॉक्टर से अभिनेता: कार बेच साइकिल पर पहुंचे विनीत, डेडबॉडी से ‘छावा’ तक का अद्भुत सफर!

Share

**विनीत कुमार: संघर्ष और सफलता की एक प्रेरणादायक कहानी**

विनीत कुमार एक ऐसा नाम है जिसने अपने जीवन के संघर्ष को एक नई पहचान दी है। आज की पीढ़ी का अधिकांश हिस्सा एक-दो साल मेहनत करने के बाद ही थक जाता है, लेकिन विनीत ने अपने जीवन में धैर्य और perseverance का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया है। वह 2000 के आसपास मुंबई आए और पिछले 25 वर्षों में उन्होंने कई फिल्मों में काम किया, लेकिन उन्हें असली पहचान अब जाकर मिली है। भारत में मेडिकल की पढ़ाई करना एक कठिन चुनौती होती है, और विनीत ने इसे अपने अभिनय सपनों को पूरा करने के लिए चुना। उनकी कड़ी मेहनत का फल अब ‘छावा’ फिल्म के रूप में सामने आया है, जिसमें उन्होंने छत्रपति संभाजी महाराज के दोस्त कवि कलश की भूमिका निभाई है।

विनीत का जन्म बनारस में हुआ। उनके पिता डॉ. शिवराम सिंह एक प्रसिद्ध गणितज्ञ हैं, और ऐसे माहौल में बड़े होने के कारण शिक्षा पर उनका ध्यान अधिक था। विनीत के लिए अध्ययन के अलावा उन्होंने खेलों में भी रुचि दिखाई, खासकर बास्केटबॉल में। हालांकि, अपनी हाइट के कारण उन्होंने इस खेल को छोड़ने का निर्णय लिया। एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने का उनका सपना तब शुरू हुआ जब उन्होंने महाविद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेना शुरू किया। अपने परिवार की सहमति के बिना, उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की ताकि रात में मरीज देख सकें और दिन में अपनी फिल्म इंडस्ट्री में करियर बनाने के लिए ऑडिशन दे सकें।

कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद, विनीत ने मेडिकल की पढ़ाई पूरी की और फिर मुंबई का रुख किया। यहां पर उन्होंने कई टीवी सीरियल्स और भोजपुरी प्रोजेक्ट्स में काम किया, लेकिन असली पहचान उन्हें अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में मिली। इस फिल्म के दौरान उन्होंने न केवल अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया, बल्कि लोगों के दिलों में जगह भी बनाई। इसके बाद, उन्हें ‘मुक्काबाज’ में भी काम करने का अवसर मिला, जिसने उन्हें और भी अधिक पहचान दिलाई।

हालांकि, विनीत को सफलता साधारण नहीं मिली। उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। एक समय ऐसा भी आया जब वह आर्थिक संकट में थे और साइकिल से चलते थे। लेकिन इन सभी कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी। फिल्म ‘छावा’ के जरिए उन्हें जो पहचान मिली, वह उनके समर्पण और मेहनत का परिणाम है। इस फिल्म में काम करने के लिए उन्होंने महाराष्ट्र के तुलापुर जाकर कवि कलश की समाधि पर ध्यान लगाया, जिससे उन्हें अपने चरित्र को समझने और निभाने में मदद मिली।

विनीत कुमार की कहानी प्रेरणादायक है, जो यह सिखाती है कि कठिनाइयाँ किसी के सपनों के मार्ग में रुकावट नहीं डाल सकतीं। संघर्ष, मेहनत और धैर्य ही अंततः सफलता के दरवाजे खोलते हैं। आज विनीत कुमार अभिनय के क्षेत्र में एक सफल नाम बन चुके हैं, और उनकी यात्रा हमें यह संदेश देती है कि अगर हम अपने सपनों के लिए संघर्ष करते रहें, तो सफलता हमारे कदम चूमेगी।