नर्मदा साहित्य मंथन के चतुर्थ सोपान का उद्घाटन सत्र : सुरेश सोनी बोले- समाज में मूल्य प्रणाली को स्थापित करने के लिये विमर्श गढ़ना जरूरी
– तीन दिनों तक चलेगा वैचारिक मंथन, देशभर से विचारक, चिंतक, साहित्यकार हो रहे है शामिल
इंदौर, 31 जनवरी (हि.स.)।विश्व संवाद केंद्र के प्रतिष्ठित साहित्योत्सव नर्मदा साहित्य मंथन ’अहिल्या पर्व’ का शुक्रवार को देवी अहिल्या विश्वविद्यालय सभागृह में शुभारंभ हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश सोनी ने मां सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्जवलन कर आयोजन का आरंभ किया। देश के जाने-माने चिंतकों, विचारकों और साहित्यकारों ने पहले दिन विभिन्न समसामयिक विषयों पर गहराई से अपनी बात रखी। श्री सोनी ने कहा, समाज में मूल्य प्रणाली को स्थापित करने के लिये विमर्श गढ़ने और उसे प्रसारित करने की आवश्यकता है। हमारी सनातनी संस्कृति वैसे भी मूल्य आधारित ही रही है, लेकिन समय-समय पर नए विमर्श गढ़ने की जरूरत है। इस अवसर पर पद्म पुरस्कार के लिये चयनित निमाड़ के साहित्यकार श्री जगदीश जोशीला का सम्मान भी किया गया।
तीन दिवसीय नर्मदा साहित्य मंथन के प्रथम दिवस का आरंभ मां नर्मदा के जलपूरित कलश की स्थापना एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। पूर्ण सम्मान और श्रृद्धा से मां नर्मदा के जल कलश की अगवानी की गई। उद्घाटन सत्र में श्री सोनी समेत देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के कुलगुरू राकेश सिंघई, वरिष्ठ साहित्यकार देवकृष्ण व्यास, आयोजन संयोजक श्रीरंगजी पेंढ़ारकर उपस्थित थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य श्री सुरेश सोनी ने ’विचार खंडन-मंडन की भारतीय परंपरा’ विषय पर अपने विचार रखे। सोनी ने कहा, राष्ट्र निर्माण में आचार, विचार और अनुभूति की आवश्यकता होती है। अनुभूति के माध्यम से विचार और विचार के माध्यम से आचार को पुष्ट करना होगा। शास्त्रार्थ करते हुए सभी विचारों पर चर्चा होनी चाहिए, जिसमें से राष्ट्रीय विचारों की पुष्टता होनी चाहिए। भारत महापुरूषों की धरती है और इसकी आचार-विचार की अपनी एक महान सनातनी परंपरा रही है। आज भी भारत में सनातनी परंपरा विकसित और स्थापित है। समय-समय पर विचारों पर आक्रमण होते रहते है। ऐसे में हमें अपने विचारों को शुद्ध करने की जरूरत होती है। विचार शुद्धिकरण के लिये विचारों का खंडन-मंडन जरूरी है। विचार में अदिति, बोध, अभ्यास, प्रयोग और प्रसार होना चाहिये। वास्तव में यही विचारों का खंडन-मंडन है।
उन्होंने कहा कि समाज में मूल्य स्थापित होना ही चाहिये। मूल्यों के बिना आदर्श समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है और इसके लिये विमर्श गढ़ने ही होंगे। वहीँ, उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलगुरु राकेश सिंघई ने कहा, मां नर्मदा केवल एक नदी नहीं है बल्कि एक पूरी सभ्यता है। उसी तरह मां अहिल्या केवल एक नारी नहीं है बल्कि वह नारी शक्ति का प्रतीक है। मां नर्मदा जीवनदायिनी है तो मां अहिल्या संस्कृति और नारी शक्ति की प्रतीक है। दोनों हमारे लिये पूज्यनीय और प्रेरणादायी है।
हिंदू विस्थापन की पीड़ा विषय पर अपने विचार रखते हुए लेखक, चिंतक क्षमा कौल ने कहा, कश्मीरी पंड़ितों ने ऐसा उत्पीड़न सहन किया है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। कश्मीरी पंड़ितों की अपनी व्यथा है, जिस पर पूरे भारतीय समाज को समझना होगा। धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में विकास तो हो रहा है, लेकिन वह मशीनरी विकास है, जबकि वहां आज मानवीय विकास की जरूरत है। मानवीय विकास के बिना कश्मीर में विकास नहीं हो सकता है, जो केवल भारतीय समाज ही कर सकता है। 370 हटने के बाद कश्मीर में बदलाव आ रहा है। समय के साथ इसकी गति में तेजी आएंगी। वास्वत में हिंदूओं में इच्छा शक्ति की कमी है, जिसके कारण आज भी यह कहना गलत होगा कि आज भी कश्मीर पूरी तरह से हमारा है। हिंदू समाज की इच्छा शक्ति की कमी का ही प्रभाव है कि पूरे भारत में कई जगहों पर छोटे-छोटे पाकिस्तान बन गये है। वास्तव में भारतीय समाज को कश्मीर के लोगों का दर्द समझना होगा और उन्हें पुनर्वास में सहायता करनी होगी, तभी हालात तेजी से सुधरेंगे। हिंदूओं को अपने पर हुए अत्याचारों को बार-बार दोहराना चाहिये, ताकि भविष्य में उन्हें दोबारा होने से रोका जा सके। कश्मीरी हिंदूओ की वापसी के बिना कश्मीर भारत का नहीं होगा। इनके अलावा भी अन्य कई साहित्यकार और लेखक कौन है अपने विचार यहां रखें।
आरंभ में मां अहिल्या के जीवन पर आधारित चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन मालवा प्रांत के संघचालक प्रकाश शास्त्री और श्री दिलीप सिंह जाधव ने किया। मां अहिल्या की मूर्ति पर माल्यार्पण कर प्रदर्शनी का श्रीगणेश हुआ। अपूर्वा गुप्ता और उनके सहयोगियों ने नर्मदाष्टकम कत्थक नृत्य की प्रस्तुति भी दी। पद्म पुरस्कार के लिये चयनित साहित्यकार जगदीश जोशीला को शाल-श्रीफल के साथ ही मां अहिल्या की मूर्ति देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मालवा प्रांत की प्रसिद्ध पत्रिका जागृत मालवा के विशेषांक का विमोचन भी किया गया।
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