लोहड़ी पर अमृतसर में किसानों का विरोध, MSP कानून की मांग और निजीकरण नीति की कॉपियां जलीं!

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पंजाब के अमृतसर में लोहड़ी के त्योहार पर किसानों ने अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन जारी रखा। किसानों ने मंडी में निजीकरण नीति के खिलाफ कॉपियों को जलाकर यह स्पष्ट किया कि उनकी आवाज को अनसुना नहीं किया जा सकता। कंपनी बाग के सामने आयोजित इस जनसभा में किसान मोदी सरकार के खिलाफ जोरदार नारेबाजी करते दिखाई दिए। उन्होंने एमएसपी गारंटी कानून की मांग की, जो कि उनकी कृषि हितों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

गौरतलब है कि खनौरी बॉर्डर पर पिछले 11 महीने से डटे किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि किसानों के संघर्ष के प्रतीक के तौर पर यह ड्राफ्ट की कॉपियां पूरे देश में जलाई जा रही हैं। उनके अनुसार, किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का आमरण अनशन अब 49 दिन पूरा कर चुका है, लेकिन सरकार अभी तक इस गंभीर मुद्दे पर संजीदगी से नहीं आई है। पंधेर ने बताया कि रोजाना लगभग 35 से 40 किसान कर्ज के बोझ तले दब रहे हैं, और यह स्थिति कई किसानों को आत्महत्या करने की ओर मजबूर कर रही है।

किसान नेता ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि खेती से जुड़ी आवश्यक चीजों जैसे कि बीज, उर्वरक और कीटनाशकों की बढ़ती कीमतें किसानों की आर्थिक स्थिति को और भी खराब कर रही हैं। पंधेर ने कहा कि किसानों के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का कानून लागू हो, जिससे उनके घाटे को कम किया जा सके। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस कानून के तहत पंजाब के किसानों को कोई नुकसान नहीं होगा, बल्कि इससे वे धान की एकल फसल की निर्भरता से बाहर आ सकेंगे।

बीजेपी नेता सुनील जाखड़ के हालिया बयान का जवाब देते हुए पंधेर ने कहा कि वास्तव में एमएसपी कानून से किसानों को लाभ होगा और यह उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में मदद करेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार को अंततः अपनी नीतियों में सुधार करना होगा और किसानों की मांगों को मानना होगा। किसानों के इस आंदोलन का उद्देश्य न केवल अपने अधिकारों की रक्षा करना है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि आने वाले समय में उनकी खेती अधिक सुरक्षित और लाभदायक हो सके।

समाप्ति पर, यह कहना सही होगा कि किसानों का यह संघर्ष केवल एक निश्चित मुद्दे का नहीं, बल्कि उनके व्यापक अधिकारों और कृषि के भविष्य से जुड़ा हुआ है। जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं होतीं, तब तक किसान अपने आंदोलन को जारी रखेंगें, ताकि उनकी आवाज को सही मायने में सुना जा सके।