कर्ज तले दबे किसान ने शंभू बॉर्डर आंदोलन में सल्फास से तोड़ा दम!

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किसानों के अधिकारों और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी की मांगे लेकर शंभू बॉर्डर पर चल रहे प्रदर्शन के बीच एक दुखद घटना घटित हुई है। रणजोध सिंह नामक एक किसान ने, जो खन्ना के रतनहेड़ी गांव का निवासी था, 14 दिसंबर को दिल्ली कूच के दौरान सल्फास निगल लिया। गंभीर स्थिति में उसे पटियाला के राजिंदरा अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उपचार के तीन दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। यह घटना न केवल उसके परिवार के लिए एक बड़ा आघात है, बल्कि प्रदर्शन कर रहे अन्य किसानों के लिए भी चिंता का विषय बन गई है।

किसान नेता इस समय मीटिंग कर रहे हैं, जब रणजोध सिंह की मौत की खबर मोर्चे पर पहुंची। किसान संगठनों का कहना है कि केंद्र सरकार की अनसुनी के कारण रणजोध सिंह जैसे किसान मानसिक तनाव में थे। उनकी पत्नी कुलदीप कौर, एक बेटा, एक बेटी और बुजुर्ग परिजनों का परिवार इस कठिनाई में जी रहा है। मृतक की बेटी की शादी हो चुकी है, लेकिन अब परिवार में एक बड़ा शोक का माहौल बना हुआ है। किसान नेता और संगठन इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं कि रणजोध का अंतिम संस्कार कैसे किया जाएगा, जबकि कई प्रमुख किसान नेता विभिन्न इलाकों में रेल रोको आंदोलन के लिए गए हैं।

किसान संगठन बताते हैं कि रणजोध सिंह किसान आंदोलन का सक्रिय हिस्सा थे और उन्होंने कई बार दिल्ली की तरफ कूच करने की कोशिश की थी। दिसंबर के महीने में, किसानों ने तीन बड़े प्रदर्शन किए थे, लेकिन हरियाणा की सीमा पर पुलिस के द्वारा उन्हें रोक दिया गया। इस दौरान पुलिस ने आंसू गैस के गोले और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया, जिससे प्रदर्शनकारियों को आगे बढ़ने में कठिनाई हुई। पिछले कुछ दिनों में करीब 30 से 40 किसान इस आंदोलन में घायल हो गए थे, जो आंदोलन के दौरान हिंसा की स्थिति को दर्शाता है।

फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग को लेकर चल रहे इस धरने में किसान यह महसूस कर रहे हैं कि उनकी आवाज़ को सरकार द्वारा लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है। रणजोध सिंह की मौत ने इस आंदोलन को एक नया मोड़ दिया है, जिससे किसानों में और अधिक आक्रोश पनप रहा है। किसानों का यह मानना है कि यदि उनकी मांगों को उचितम रूप से सुना नहीं गया, तो ऐसे दुखद घटनाएं और भी बढ़ सकती हैं। यह स्थिति न केवल किसानों के लिए, बल्कि整个 कृषि क्षेत्र के लिए चिंताजनक है।

सरकार के साथ संवाद स्थापित करने की कोशिशों के बावजूद, किसान संगठनों का कहना है कि वह अब और अधिक दृढ़ता से अपनी मांगों को उठाएंगे। उनके लिए यह जीवन और मृत्यु का सवाल बन गया है, और वे कानून की मांग को लेकर坚持 करेंगे। यह आंदोलन न सिर्फ रणजोध सिंह की याद में, बल्कि सभी किसानों के सम्मान और उनके अधिकारों के लिए लड़ा जा रहा है।