खन्ना उपचुनाव: भाजपा प्रवक्ता चुनौती देंगे, कांग्रेस पार्षद की मृत्यु से खाली सीट पर मुकाबला!

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खन्ना के वार्ड नंबर 2 में नगर कौंसिल उप चुनावों का आयोजन हो रहा है। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने प्रवक्ता इकबाल सिंह चन्नी को उम्मीदवार के तौर पर पेश किया है। गौरतलब है कि ये उप चुनाव कांग्रेस के पूर्व पार्षद गुरमिंदर सिंह लाली के निधन के बाद हो रहे हैं। पिछली बार हुए चुनावों में लाली ने चन्नी को शिकस्त दी थी, जब चन्नी ने शिरोमणि अकाली दल की ओर से चुनाव लड़ा था। इसके बाद चन्नी ने भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया।

इकबाल सिंह चन्नी के लिए यह चुनाव उनके राजनीतिक करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है। वे इससे पहले नगर कौंसिल के अध्यक्ष रह चुके हैं और खन्ना के विधान सभा चुनावों में टिकट की मांग भी कर चुके हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि चन्नी के पास चुनावी अनुभव है, लेकिन विगत चुनाव में लाली के हाथों हारने का बोझ उनके लिए चुनौती हो सकता है। चन्नी की भाजपा में शामिल होने की कहानी भी उनके राजनीतिक सफर को दिलचस्प बनाती है, जहां उन्होंने अकाली दल छोड़ने के बाद भाजपा का दामन थामा।

वहीं, कांग्रेस पार्टी इस वार्ड के लिए मतदाताओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए गुरमिंदर सिंह लाली के बेटे को उम्मीदवार बना सकती है। लाली पार्टी के सीनियर नेता थे ओर उनके निधन ने पार्टी में एक शून्य उत्पन्न किया है। उनकी पत्नी, अंजनजीत कौर, वार्ड नंबर 3 से पार्षद हैं, जिसका मतलब है कि लाली परिवार कांग्रेस के भीतर गहरी जड़ें रखता है। इस स्थिति में लाली के बेटे का मैदान में उतरना, कांग्रेस के लिए एक रणनीतिक कदम होगा, जिससे वे मतदाताओं का समर्थन हासिल कर सकें।

आम आदमी पार्टी (आप) के भी चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी है, जहां मनदीप सिंह ने अपने नामांकन का दावा किया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे यह चुनावी मुकाबला तीनों प्रमुख दलों के बीच चलता है और किस प्रकार की रणनीतियाँ उनके द्वारा अपनाई जाती हैं। चुनावी परिदृश्य में चल रहे गतिरोध के बीच, जनहित में विकास और स्थानीय मुद्दों को लेकर राजनीतिक दल किस तरह से अपनी बात रखते हैं, यह महत्त्वपूर्ण होगा।

इस उप चुनाव के परिणाम न केवल खन्ना के स्थानीय राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करेंगे, बल्कि यह भाजपा, कांग्रेस और आप के बीच जारी ताकतवर संघर्ष को भी उजागर करेंगे। सभी दलों को अपनी-अपनी रणनीतियाँ और चुनावी नीतियाँ स्पष्ट करनी होंगी, ताकि वे मतदाताओं का विश्वास जीत सकें और इस चुनाव को अपनी राजनीतिक अदायगी के लिए एक सकारात्मक कदम में बदल सकें।